For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़ीस्त को मुझसे है गिला देखो

जी रहा हूँ मैं हौसला देखो

साथ रहते हैं एक छत के तले

दरम्याँ फिर भी फासला देखो

तुम जिधर जा रहे हो बेखुद से

वहीं आयेगा जलजला देखो

सँभाल ही लूँगा मरासिम सारे

तुम कोई और मुआमला देखो

प्यार पे उसको दो नही ख़ुत्बा

दुध का वो भी है जला देखो

उसने मकबूलियत भी देखी है

शम्स उसका है अब ढला देखो

हवा है गुम मगर उमीद तो रख

एक पत्ता है फिर हिला देखो

चला था मैं अकेला ही मगर

साथ अब मेरे काफिला देखो

जो भी आया उसको है जाना

‘दीप’ ज़ारी ये सिलसिला देखो

 

ख़ुत्बा=भाषण

मरासिम=रिश्ते

दीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अ प्रकाशित

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 8, 2019 at 12:26pm

अजय तिवारी जी प्रणाम, आप का हुक्म सर आंखों पर्।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 8, 2019 at 12:24pm

जी समर ही लगभग दो दशक पहले की रचना है, जियादा कुछ पता नही था {मेरा मानना है अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है} प्रयास करता रहूँगा। अगर आप उचित समझे तो मुझे अपना मोबाइल नम्बर दे दें, ताकि आपका मार्गदर्शन  लिया जा सके। मेरा मोबाईल नम्बर-9867678909 (Whats up) है।

Comment by Samar kabeer on July 7, 2019 at 12:11pm

जनाब प्रदीप जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अजय तिवारी साहिब की बातों का संज्ञान लें,कुछ बातें मैं आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'मैं जी रहा हूँ हौसला देखो'

ये मिसरा बह्र में नहीं,यूँ कर सकते हैं:-

'जी रहा हूँ मैं हौसला देखो'

'हवा है गुम मगर उम्मीद तो रख

एक पत्ता है फिर हिला देखो'

इस शैर में शुतरगुरबा ऐब है,और ऊला में 'उम्मीद' की जगह "उमीद" शब्द उचित होगा,वज़्न के लिहाज़ से ।

'आए कितने कोई ठहरा है कहाँ'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

Comment by Ajay Tiwari on July 6, 2019 at 10:38am

आदरणीय प्रदीप जी,

सम्भाँल ही लूँगा मरासिम सारे > सही शब्द 'सँभाल'(121) है. मिसरा फिर से देखिएगा. 

 

हवा है गुम मगर उम्मीद तो रख > बह्र में नहीं है.  'है हवा गुम मगर उमीद तो रख' किया जा सकता है.

अच्छे शेर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service