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"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.
रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.
"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश की.
"तो, इसका मतलब यह तो नहीं है कि वह हमारी इज्जत भी नहीं करेगी", रुक्मणि आज चुप नहीं होने वाली थी.
"दो दिन से वह हम लोगों का ख्याल रखने की पूरी कोशिश कर रही है. राजेश भी नहीं है वर्ना उसकी थोड़ी मदद कर देता. और जहाँ तक सवाल है इज्जत का, वह उसकी निगाहों में देखने की कोशिश करो".
"आप ही देखो उसकी निगाहें, मैं तो गंवार ठहरी, मुझे क्या पता ये सब", रुक्मणि उठकर जाने लगी.
"मुझे पता है कि असली वजह राजेश का प्रेम विवाह है और तुम्हें दहेज़ नहीं मिलने का गुस्सा है. लेकिन इसमें इस बेचारी लड़की का क्या कसूर", रवि ने रुक्मणि का हाथ पकड़कर बैठा लिया. उनको एहसास हो गया था कि बहू के कानों में ये बात चली गयी है.
अभी रुक्मणि फिर कुछ कहती कि बहू ट्रे में चाय लेकर आ गयी. चाय रखने में पल्लू सर से वापस सरक गया और रुक्मणि की भौहें फिर तन गयीं.
"मांजी, मुझे आज आपसे पल्लू ठीक रखना सीखना है. मेरी माँ रही होती तो उसने मुझे जरूर सिखाया होता. अब तो आप ही हमारी माँ हैं, मुझे बताईये प्लीज", बहू वहीँ सामने बैठ गयी.
रुक्मणि तो जैसे स्तब्ध रह गयी, ये क्या सुन रही है वह. रवि भी बहू की इस बात से एकदम खिल उठे.
"तू तो ऐसे ही इतनी अच्छी लगती है, अरे माँ के सामने बेटी कहीं पल्लू लेती है", कहकर रुक्मणि ने बहू को गले से लगा लिया. मन में बसा सारा गुबार आंसुओं के रास्ते बह निकला. ट्रे में रखी रुक्मणि की चाय उसी तरह पड़ी थी लेकिन रवि के प्याले की चाय कुछ नमकीन हो गयी.


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 29, 2019 at 12:56pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on May 29, 2019 at 12:55pm

बहुत बहुत आभार आ बृजेश कुमार 'ब्रज'साहब

Comment by Samar kabeer on April 14, 2019 at 4:44pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2019 at 6:23pm

बहुत ही खूबसूरत कथा है आदरणीय...

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:58am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ बबिता गुप्ता जी

Comment by Sushil Sarna on April 10, 2019 at 6:35pm

आदरणीय विनय जी .... कल और आज के बीच उभरती विचारों की खाई को पाटती इस भावपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 10, 2019 at 3:58pm

आदरणीय विनय कुमार जी, सकारात्मक सन्देश देती हुए बहुत ही सूंदर रचना। प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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