For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़माने के आशियाने (लघुकथा) :

 मिर्ज़ा मासाब को रिटायर होने में आठ-दस साल ही बाक़ी थे। परिवार के प्रति सारे फ़र्ज़ अदा कर चुके थे । एक बढ़िया सा मकान हो जाये और हज अदा हो जाये; बस यही आरजू रह गई थी। पैसों का इंतज़ाम तो हो गया। अब इस सदी में मुल्क के ऐसे हालात में इस बस्ती का पुराना घर बेचकर नये ज़माने का मकान कब, कहां व कैसे बनवाएं या बना बनाया ख़रीदें; बस यही उनके दिमाग़ में था। इसी सिलसिले में एक चर्चित सोसाइटी में वे अज़ीज़ दोस्त महफ़ूज़ का फ्लैट देखने पहुंचे। मुआयना किया। जानकरियां जमा कीं। सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं पर बातचीत हुई।


"सब कुछ बढ़िया ही है! बस दूसरी क़ौम के लोगों में अकेले पड़ गये हो यहां! माहौल वैसे भी ठीक नहीं है! ख़ुदा ख़ैर करे!" मिर्ज़ा जी ने फ्लैट की बालकनी में खड़े होकर दोस्त से कह कर उसकी दुखती रग पर हाथ रख ही दिया।


"क्या करूं दोस्त! नये ज़माने की मांग और मार है! अम्मी-अब्बू और जॉइंट फेम्अलि को छोड़ना तो मैं भी नहीं चाह रहा था। लेकिन बीवी-बच्चों की ख़ातिर उन्हें उस क़ैद से बाहर कर ही दिया!" यह कहते हुए महफ़ूज़ के माथे पर  कुछ शिकनें उभर आईं।


"दूसरी बात यह भाई... न तो तुम्हें यहां कोई अज़ान सुनाई देगी और न ही नमाज़ अदा करने के लिए नज़दीक़ कोई मस्जिद!" मिर्ज़ा मासाब के इन लफ़्ज़ों ने महफ़ूज़ को फ़िर से विचलित कर दिया।


"लेकिन यहां बुद्धिजीवियों के बीच महफ़ूज़ हूं दोस्त और घर की कलह भी किसी को सुनाई नहीं देगी! सारी सहूलियतें हैं न यहां!" अपनी नम आंखें पोंछते हुए उसने जवाब दिया।


"बुद्धिजीवी! मुल्क का माहौल जानते हुए भी तुम्हें उन पर ऐतबार है!" मिर्ज़ा मासाब ज़रा झुंझलाकर बोले।


"ऐतबार और एतराज़ जैसी कोई बात अहम नहीं! अहम तो है आपसी समझ, मुहब्बत और अख़लाक़ मेरे भाई!" महफ़ूज़ ने मिर्ज़ा मासाब के गले में हाथ डाल कर कहा।


(मौलिक व अप्रसारित)

Views: 392

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 11, 2019 at 7:42pm

मेरे इस रचना पटल के अवलोकन और मुझे यूं प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 6, 2019 at 3:52pm

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार। अच्छी लघुकथा की रचना। प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on March 5, 2019 at 3:34pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2019 at 3:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service