For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं)

1222 1222 1222 1222
सुबह से शाम तक नाराज़गी बर्दाश्त करते हैं।
हम अपने अफ़सरों की ज़्यादती बर्दाश्त करते हैं।
अज़ल से हम उजाले के रहे हैं मुन्तज़िर लेकिन,
मुक़द्दर ये कि अबतक तीरगी बर्दाश्त करते हैं।
सँभालो लड़खड़ाते अपने क़दमों को, ख़ुदा वालो,
ये पैमाने तो कितनी बेख़ुदी बर्दाश्त करते हैं।
सुना है, मौत महबूबा है, उसकी इंतज़ारी में,
हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं।
कुछ ऐसे शख़्स जो हमदर्दियों के कारोबारी हैं,
वो अपनी नेकियों से हर बदी बर्दाश्त करते हैं।
तुम्हारे कान के झुमके सहमकर, कसमसाकर भी,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की पेचीदगी बर्दाश्त करते हैं।
बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,
कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं।
हज़ारों खूबियां और ना-शनासा इश्क़ से होना,
चलो हम आपमें इतनी कमी बर्दाश्त करते हैं।
मौलिक/अप्रकाशित।
- बलराम धाकड़ ।

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on February 14, 2019 at 9:56pm

आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

कबूतर वाले शे'र में कुछ बदलाव की कोशिश करूँगा।

आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर को यह शे'र सुनाया तो था किंतु आपकी टिप्पणी बाद उनके नज़रिये में शे'र के प्रति बदलाव भी आ सकता है... हा हा हा...

सादर।

Comment by Samar kabeer on February 13, 2019 at 4:20pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला तो आप पर फिट बैठता है,हा हा हा..

'बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,
कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं'
ये शैर तार्किकता की दृष्टि से मुनासिब नहीं,क्योंकि आज के दौर में कबूतरों से ये काम नहीं लिया जाता,दूसरी बात ये कि हर कबूतर ये काम नहीं करता,वो कुछ ख़ास कबूतर होते हैं,जिन्हें "नामाबर" कहते हैं,और ये काम वो दो निवालों के लिए नहीं करते,ग़ौर करें ।
Comment by Balram Dhakar on February 13, 2019 at 11:22am

आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 13, 2019 at 11:21am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ाब बशर साहब।

सादर।

Comment by Sushil Sarna on February 12, 2019 at 7:57pm

आदरणीय बलराम धाकड़ जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Surkhab Bashar on February 12, 2019 at 7:49pm

जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
3 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service