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क़ज़ा के वास्ते ये इंतिज़ाम किसका है ।
तेरे  दयार  में  जीना  हराम किसका  है ।।

उसे है ख़ास ज़रूरत  जरा पता करिए ।
बड़े  सलीके  से  आया  सलाम किसका  है ।।

दिखे हैं रिन्द बहुत तिश्नगी के साथ वहाँ ।
कोई बताए गली में मुकाम किसका है ।।

है जीतना तो ख़यालात ऐब पर ले जा ।
खबर तो कर वो अभी तक गुलाम किसका है ।।

वो पूछ बैठे हमीं से यूँ अजनबी बनकर ।
के उनके हुस्न  पे  लिक्खा कलाम किसका है ।।

यही सवाल है साकी से आज महफ़िल में ।
छलक गया जो सरे बज़्म जाम किसका है ।।

फ़ना हुए जो वतन पर वो नाम भूल गए ।
तुम्हारे मुल्क़ में अब एहतराम किसका है ।।

ग़रीब आज भी भूखा मिला है फिर मुझको ।
यहां  फ़िज़ूल  का ये  ताम-झाम किसका  है ।।

-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2019 at 6:00am

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 23, 2019 at 11:32am

आ0 कबीर सर सादर नमन और आभार । उसे है खास ज़रूरत .......भाव कुछ इस तरह लिया है मैंने 

बात सलाम करने के लहजे पर है ।  ज़रूरत पर लोगों के सलाम करने का अंदाज़ बदल जाता है । 

है जीतना तो खयालात .......

पूरे शेर का मफ़हूम कुछ इस प्रकार है 

किसी पर जीत हासिल करनी है तो सबसे पहले उसकी कमियों पर ध्यान केंद्रित करो । अगर पता चल जाये कि अमुक व्यक्ति में ऐब कहाँ कहाँ पर है या वह किस नशे का गुलाम है तो उसे हराना आसान होगा । बस इतना सा सन्देश है सर । 

अदू का अर्थ नहीं समझ पाया । 

बेहतरीन इस्लाह के लिए हार्दिक आभार। आपकी बात महत्वपूर्ण है मैं शेर बदल दूंगा । 

सादर

Comment by Samar kabeer on January 22, 2019 at 10:58pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'उसे है ख़ास ज़रूरत  जरा पता करिए ।
बड़े  सलीके  से  आया  सलाम किसका  है'

उसे ख़ास ज़रूरत क्यों है? शैर का मफ़हूम स्पष्ट नहीं है,ऊला मिसरा यूँ कर लें:-

'ख़ुशी अदू को बहुत है,ज़रा पता कीजै'

'है जीतना तो ख़यालात ऐब पर ले जा ।
खबर तो कर वो अभी तक गुलाम किसका है'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,ख़ारिज करना उचित होगा ।

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