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अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।

सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।

इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।

कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।

तुझे बख्सा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।

दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है ।।

तुम्हारे मैकदे में देखता हूँ ।
बहुत पीना पिलाना चल रहा है ।।

ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तस्व्वुर में तराना चल रहा है ।।

यूँ उसकी शायरी पे जाइये मत ।
वहाँ मकसद रिझाना चल रहा है ।।

अरूजे फ़न से अब डरना है कैसा ।
तुम्हारे साथ दाना चल रहा है ।।

शराफत बिक रही बाज़ार में अब ।
शरीफों का बयाना चल रहा है ।।

सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:13am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 7:56pm

आ0 लक्ष्मण धामी साहब ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2019 at 7:53pm

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 7:52pm

आ0 महेंद्र कुमार साहब आपकीं बात से भी सहमत हो गया । हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 7:51pm

आ0 कबीर सर बहुत बहुत आभार के साथ नमन । मैं आपसे सहमत हो गया सर । 

Comment by Samar kabeer on January 18, 2019 at 2:37pm

'दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो 
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है'

इस शैर में 'वो' और 'वह' शब्द के टकराव की सूरत बन रही है,इसका कारण ये है कि दोनों ही शब्द वस्तु के लिए इस्तेमाल हुए हैं,जबकि 'वो' शब्द वयक्ति और 'वह' शब्द किसी वस्तु के लिए इस्तेमाल होते हैं,और एक शब्द है 'वे' ये एक से अधिक के लिए इस्तेमाल होता है,चूँकि आपके दोनों मिसरों में वस्तु के लिए इस्तेमाल हुए हैं इसलिए यहां टकराव की सूरत बनी । उम्मीद है आप समझ गए होंगे?

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 2:05pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब तहेदिल से आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 2:05pm

आ0 मुहम्मद अनीस शेख़ साहब तहेदिल से शुक्रियः । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 2:02pm

आ0 गुरुदेव कबीर सर हार्दिक आभार के साथ नमन । ग़ज़ल खटक मिटाने के लिए जो सुझाव दिया उसके लिए तहेदिल से आभारी हूँ । लेकिन प्रश्न एक रह जाता है वो और वह को लेकर । मैने पढा था सानी और ऊला में एक ही शब्द के टकराव से बचना चाहिए । सेम शब्द सानी और ऊला में टकराएं मत यह बात तर्क संगत लगी । इससे ग़ज़ल का हुस्न प्रभावित होता है पर समान अर्थ देने वाले   दो अलग अलग शब्द शेर के दोनों मिसरे में प्रयोग होते देखना आम बात हो चुकी है । 

जैसे क़ज़ा शब्द ऊला में है तो सानी में मौत शब्द का प्रयोग होना आम बात है । 

ठीक इसी तरह से मैने वो और वह शब्द का प्रयोग सानी और ऊला में किया है । मेरे विचार से यह टकराव तो नहीं लग रहा । कृपया इस विषय पर अपनी व्याख्या देने की कृपा करें । सादर नमन ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 18, 2019 at 1:50pm

आ0 महेंद्र कुमार जी गज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रियः ।

ऊला में वो और सानी में यह दिनों शब्द का प्रयोग किसी एक वस्तु के लिए नहीं है । वो शब्द व्यक्ति के लिए है जबकि वह शब्द ख़ज़ाने के लिए है । मुझे नहीं लगता कोई दोष है । 

गुरुदेव कबीर साहब की इस्लाह के अनुसार रवानेअच्छी रहे इसलिए गुरुदेव की इस्लाह काबिले गौर है । स्वीकार किया ।

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