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खुशी बाँटो कि बँटकर  भी  - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२-/१२२२/१२२२
किसी के घर बहुत आवागमन से प्यार कम होगा
इसी  के  साथ  हर बारी  सदा  सत्कार कम होगा।१।


जरूरत सब को पड़ती है यहाँ कुछ माँगने की पर
हमेशा   माँगने   वाला  सही  हकदार  कम  होगा।२।


खुशी बाँटो कि बँटकर  भी  नहीं भंडार होगा कम
अगर साझा करोगे दुख तो उसका भार कम होगा।३।


नजाकत देख  रूठो  तो  मिलेगा  मान रिश्तों को
जहाँ रूठोगे पलपल में सुजन मनुहार कम होगा।४।


वही है काम की नेकी बहा दी जो भी नदिया में
बखानोगे अगर उसको सदा आभार कम होगा।५।


कहो मत हद से मीठा भी कि होगी चापलूसी वो
करोगे शब्द कड़ुवे तो  बहुत  व्यवहार कम होगा।६।


मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2019 at 5:58am

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन । गजल पर स्नेह के लिए आभार .

Comment by Ajay Tiwari on January 23, 2019 at 7:12pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2019 at 4:00pm

आ. भाई फूल सिंह जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2019 at 3:59pm

आ.भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और नेक सलाह के लिए आभार ।

Comment by PHOOL SINGH on January 21, 2019 at 4:08pm

"भाई लक्ष्मण" बहुत ही सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें

Comment by Samar kabeer on January 19, 2019 at 11:10pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के सानी मिसरे का शिल्प कमज़ोर लगा,देखियेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2019 at 3:46pm

आ. भाई राज नवादवी जी, सादर आभार ।

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:10am

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

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