For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं

212 212 212 212
कैसे कह दूं हुआ हादसा ही नहीं ।
दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं।।

तब्सिरा मत करें मेरे हालात पर ।
हाले दिल आपको जब पता ही नहीं ।।

रात भर बादलों में वो छुपता रहा ।
मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं ।।

आप समझेंगे क्या मेरे जज्बात को ।
आपसे जब ये पर्दा हटा ही नहीं ।।

मौत भी मुँह चुराकर गुज़र जाती है ।
मुफ़लिसी में कोई पूछता ही नहीं।।


कह दिया आपने बेवफा जब मुझे ।
और कहने को कुछ भी बचा ही नहीं ।।

होश ही उड़ गये हुस्न को देखकर ।
क्या हुआ तेरा ज़ादू चला ही नहीं ।।

हम कदम दर कदम यूँ ही बढ़ते रहे ।
फ़ासला अब तलक कुछ घटा ही नहीं ।।


इश्क़ में कोई उलझा रहा आपके ।
आप सुलझा सके मसअला ही नहीं ।।

जल गया ये चमन रफ़्ता रफ़्ता सनम ।
पर धुआँ देखिए कुछ उठा ही नहीं ।।

बात करती असर फैसले के लिए ।
आप ने मुझको शायद सुना ही नहीं ।।

-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2019 at 8:01pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:23pm

आ0 फूल सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:22pm

आ0 मुहम्मद अनीस शेख साहब बहुत बहुत शुक्रियः।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:21pm

आ0 गुरुदेव समर कबीर साहब महत्वपूर्ण इस्लाह के लिए बहुत बहुत आभार और नमन।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:19pm

आ0 तुरंत साहब ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:25am

शानदार ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद 

Comment by Md. Anis arman on December 29, 2018 at 11:17am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by PHOOL SINGH on December 28, 2018 at 2:20pm

बहुत सूंदर रचना बधाई स्वीकारे

Comment by Samar kabeer on December 27, 2018 at 10:16pm

जनाब डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं '

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'चाँद, कैसे कहोगे ख़फ़ा  ही नहीं'

' आप सुलझा सके मसअला ही नहीं '

इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'आप कहते हैं ये मसअला ही नहीं'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service