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"मेरे पास अभी कुछ भी नहीं है जमा करने के लिए सर, आप बताईये क्या करूँ", सामने बैठी लड़की ने बड़ी मायूसी से कहा और एक प्रार्थना पत्र मेज पर रख दिया. उसने प्रार्थना पत्र उठाया और पढ़ने लगा, नीचे लिखे नाम पर उसकी नजर अटक गयी "नाज़िया खान". अरे यह तो वही लड़की है जिसकी सब बहुत तारीफ़ करते थे कि इतनी गरीब होने के बाद भी हमेशा शिक्षा ऋण की किश्त जमा करती है.
"क्या हो गया नाज़िया, तुम तो हमेशा समय पर पैसे जमा करती थी. और तुम्हारा ऋण खाता भी तो रेगुलर है?, उसके मन में कारण जानने की जिज्ञासा होने लगी.
"सर पिछले महीने तक तो किसी तरह पैसे जमा किये, लेकिन अब नौकरी छोड़ दी, तीन महीने से तनख्वाह ही नहीं दे रहा था. पिताजी भी दो महीने से बिस्तर पकड़ लिए हैं तो उनका अंडे का ठेला भी बंद है. बस मैं ही हूँ जो कमाती हूँ और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च चला रही हूँ", उसकी जबान और नज़रों में लाचारी टपक रही थी.
अब ऐसे लोगों के लिए उसके पास भी कोई रास्ता नहीं था, ऋण खाता रेगुलर है तो कोई रियायत भी नहीं दे सकता. कितनी विडंबना है कि रियायत भी बेईमानो को ही मिलती है, ईमानदारों के लिए कोई प्रावधान नहीं है, उसका मन खिन्न हो गया.
"देखो, तुम दूसरी नौकरी की तलाश करो और जब मिल जाए तो पैसे जमा करा देना. और अगर किसी व्यवसाय की योजना मन में हो तो बताना, हम मदद करेंगे. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा नाम बेईमानो में लिखा जाए, मैं भी देखता हूँ, कहीं कोई वैकेंसी होगी तो बताऊँगा".
नाज़िया ने सर हिलाया और उठकर जाने लगी. अब उसके चेहरे पर थोड़ी आस्वस्ति के भाव थे.
"अच्छा यह बताओ कि तुम चाहती तो पैसे नहीं भी जमा कर सकती थी, तुम्हारी कोई संपत्ति भी बंधक नहीं है हमारे पास. फिर तुम क्यूँ आयी बैंक में यह सब बताने", उसने अपना सवाल पूछ ही लिया जो उसे परेशान कर रहा था.
नाज़िया रुकी और उसने गंभीरता से जवाब दिया "सर, मेरे पिताजी बिलकुल पढ़े लिखे नहीं हैं और काफी धार्मिक भी हैं. वह हमें यही बताते हैं कि किसी का क़र्ज़ अपने ऊपर रहे, यह हराम है. मैं दूसरी नौकरी की तलाश करती हूँ सर, आपके सुझाव के लिए शुक्रिया".
नाज़िया चली गयी, उसने अपने ऋण प्रबंधक को बुलाया और तल्ख़ शब्दों में बोला "जितने बड़े डिफाल्टर हैं उन सबकी सम्पत्तियाँ तुरंत बेचने के लिए लगा दो, कोई रियायत नहीं देंगे इन कमीनों को".
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 1:34pm

बहुत बहुत आभार आ मिर्ज़ा जावेद बेग जी

Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 1:33pm
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी
Comment by TEJ VEER SINGH on September 22, 2018 at 12:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन रचना।

Comment by mirza javed baig on September 21, 2018 at 10:56pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब 

बहुत उम्दा अंदाज़ में लघूकथा कही आपने 

बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार प्रस्तुति पर

Comment by विनय कुमार on September 21, 2018 at 1:39pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on September 21, 2018 at 1:38pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ मुहतरम जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Samar kabeer on September 21, 2018 at 11:36am

जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 21, 2018 at 12:09am

एक नया विषय व नया मुद्दा उठाते/उभारते हुए युवा वर्ग को सबक़ देती प्रेरक व विचारोत्तेजक. रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।

Comment by विनय कुमार on September 20, 2018 at 5:50pm

बहुत बहुत आभार आ अजय तिवारी जी

Comment by Ajay Tiwari on September 20, 2018 at 5:10pm

आदरणीय विनय जी, एक और अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई.

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