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अबतक तो बस तन्हा हूँ - गजल ( लक्ष्मण धामी मुसाफिर)

२२ २२ २२ २


पूछ न इस  रुत कैसा हूँ
अबतक तो बस तन्हा हूँ।१।


बारिश तेरे  साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।


आता जाता एक नहीं
मैं भी  कैसा  रस्ता हूँ।३।


जब तन्हाई डसती है
सारी रात भटकता हूँ।४।


हाथों में  चुभ  जाते हैं
काँटे जो भी चुनता हूँ।५।


जाने कौन चुनेगा अब
उतरन वाला कपड़ा हूँ।६।


तारों सँग कट जाती है
शरद अमावस रैना हूँ।७।


अनमोल भले बेकार पड़ा
विधवा का  ज्यों गहना हूँ।८।


मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 22, 2018 at 10:09am

जनाब अजय तिवारी साहिब विस्तार से बता चुके हैं,मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by Ajay Tiwari on August 22, 2018 at 9:08am

आदरणीय लक्ष्मण जी,

नासिर काज़मी की ज़मीन में ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

'अनमोल भले बेकार पड़ा' = अनमो (फ़ेलुन 22) ल भले (फ़इलुन 112) बेका(फ़ेलुन 22) र पड़ा (फ़इलुन 112)

इस ग़ज़ल की बह्र बह्रे-मीर का एक परिवर्तित रूप है. इस बह्र में फ़इलुन(112) का प्रयोग नहीं हो सकता. इस बह्र में मीर के शेर देखें :

http://www.openbooksonline.com/group/kaksha/forum/topics/5170231:To... 

लय में फर्क पड़ने की वजह फ़इलुन का प्रयोग और मिसरे में दो हर्फों का अधिक होना है. 

'इक अनमोल मगर बेकार' या इसी वज़न का कुछ और रख सकते हैं.

  

सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 11:07pm

आ. भाई छोटेलाल जी, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 10:01pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति से मान बढा़ने के लिए आभार ।

क्या इंगित पंक्ति को ऐसा करने से लयबद्ध हो रही है ? सुझाईये

अनमोल मगर बेकार पड़ा 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 21, 2018 at 8:33pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब अनमोल भावों को समेटे सुंदर गजल के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 7:30pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2018 at 6:47pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

अनमोल भले बेकार पड़ा'

इस मिसरे की मात्राएँ पूरी हैं, लेकिन लय नहीं है,जबकि मात्रिक बह्र में लय बहुत ज़रूरी होती है,देखियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on August 21, 2018 at 4:48pm

बारिश तेरे साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।

वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी वाह अद्भुत भावों की शानदार ग़ज़ल। १ से ८ तक हर शेर लाज़वाब है सर। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।

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