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पतझड़ -  लघुकथा –

पतझड़ -  लघुकथा –

केशव ने जैसे ही अपने घर के बाहर लगे पेड़ के नीचे से अपना साईकिल रिक्शा उठाया, उसके पड़ोसी रहमान ने उसका हाथ पकड़ लिया,

"यह क्या कर रहे हो केशव? कल तुम्हारे पिता का देहांत हुआ है और आज तुम रिक्शा लेकर काम पर चल दिये"?

"भाई, मेरे रिक्शा ना चलाने से जाने वाला  तो वापस नहीं आयेगा। लेकिन भूख प्यास से मेरे बच्चे भी मेरे पिता की तरह मुरझा जायेंगे"|

" हम लोग क्या मर गये हैं? इतने बेगैरत नहीं कि दो चार दिन अपने पड़ोसी के बच्चों को खाना भी ना दे सकें"?

"मुझे गर्व है आप जैसे पड़ोसी पर। पर कब तक ऐसा चलेगा"?

"भाई, कम से कम तेरह दिन तो शोक रखना ही चाहिये"|

"माफ़ करना भाई। यह खोखले रीति रिवाज़ केवल एक ढकोसला मात्र हैं"|

"नहीं भाई ऐसा मत कहो? सदियों से हमारे पुरखों द्वारा स्थापित हैं ये रीति रिवाज़। कुछ तो इनका सामाजिक मूल्य होगा ही"?

"भाई, आपको याद है, दो साल पहले यह पेड़ कितना हरा भरा था। ऐसे ही हमारा परिवार भी खुश हाल था। मेरी माँ इस पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर चिड़ियों को दाने खिलाती थी"।

"वह भी कोई भूलने की बातें हैं"।

"और आज देखो जैसे यह पेड़ सूख गया वैसे ही मेरा परिवार भी मुरझा गया"।

"वह सब भूल जाओ, केशव जी"।

"इतना आसान नहीं है भूलना। मेरे पिता एक ईमानदार और उसूलों के पक्के सरकारी मुलाज़िम थे।चंद बेईमान लोगों ने उन्हें झूठे षडयंत्र में फ़ंसाकर नौकरी से निकलवा दिया। पिता वह सदमा नहीं झेल पाये और शराब के आदी हो गये। कर्ज़दार होते चले गये। घर के बिगड़ते हालातों ने माँ की जान ले ली। तभी से परिवार मुरझाता चला गया”|

"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा भाई। ऊपरवाले पर भरोसा रखो"।

"भाई, इतनी सारी पढ़ाई की डिग्रियाँ हासिल करने के बाद भी, पिता की बिगड़ी इमेज के कारण नौकरी नहीं मिली। मजबूरी में रिक्शा चलाता हूँ। मेरी दशा भी इस सूखे पेड़ जैसी हो गयी है”|

“सच कहते हो केशव भाई, मुसीबत रूपी पतझड़ पेड़ों को ही नहीं इंसानों को भी सुखा देता है”|

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Neelam Upadhyaya on June 15, 2018 at 2:30pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार । अच्छी, संवेदनशील कथानक पर बढ़िया लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 15, 2018 at 10:49am

हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 15, 2018 at 10:48am

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 15, 2018 at 10:48am

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।

Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2018 at 10:25am
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..
Comment by Mohammed Arif on June 15, 2018 at 10:14am

बेहतरीन कथानक पर बुनी गई कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 15, 2018 at 5:54am

'साइकल -रिक्शा'

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 15, 2018 at 5:52am

ऐसे वार्तालाप अक्सर ऐसे पीड़ितों द्वारा होते हुए सुने जाते हैं। बेहतरीन कथानक पर बेहतरीन  संदेश वाहक उम्दा सृजन व शीर्षक के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह  साहिब।

केवल इतना कहूंगा कि पोस्ट करने से पहले इसके पूरे नहीं, तो किसी एक पात्र के संवाद बोलचाल वाली शैली या किसी क्षेत्रीय भाषा में कर देते, तो रोचकता व आकर्षण बढ़ जाता मेरे विचार से। इसी प्रकार उत्तरार्ध के दो लंबे संवाद दो भागों में किसी तरह बांटे जा सकते हैं। सादर।

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