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ग़ज़ल -- शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर // दिनेश कुमार

221---2121---1221---212
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर
.
तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा
भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर

महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को
आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर
.
ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में
पहले उदर की आग बुझाने की बात कर
.
मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल
ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर
.
बस पैरहन ही जिस्म का बदले न ये क़ज़ा
परमात्मा से ख़ुद को मिलाने की बात कर
.
धुंधले दिखें न कर्म तिरे ख़ुद को ऐ 'दिनेश'
शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर
.
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on April 30, 2018 at 8:52am

बेहतरीन पेशकश आदरणीय जनाब दिनेश कुमार जी ।

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 8:27am

भाई, इता दोष से बचने का सबसे आसान तरीका है कि यदि काफ़िये पिलाने, दिखाने आदि हों तो मतले में एक बढ़ा हुआ रखिए और एक मूल ..फिर उस में ने जोड़ दें ..
जैसे पिला के साथ आ  तो बनेगा पिलाने और आ ने ... या सुला ..आज़मा,, तो सुलाने ..  आज़माने 
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on April 30, 2018 at 4:20am

हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर सर जी। बहुत इनायत सर।

नाराज़गी की कोई बात कैसे हो सकती है सर,  मतलब ही नहीं। सारा क़ुसूर यहाँ के comment box का है। कभी तो मेरे जवाब show कर देता है, और कई बार 5-6 बार type कर टक्कर मार कर थक जाता हूँ, लेकिन comment नहीं छपता। लेकिन  जो आपने बताया था, वो नोट करता और ठीक ज़रूर करता हूँ। सादर। 

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 9:44pm

जनाब दिनेश जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें,बाक़ी निलेश जी कह चुके हैं ।

आपकी पिछली ग़ज़ल पर भी मैंने कुछ लिखा था,लेकिन आपने जवाब देने की ज़हमत गवारा नहीं की,क्या नाराज़गी है भाई?

Comment by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 7:59pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए आभार आ. बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 29, 2018 at 7:53pm

आदरणीय दिनेश जी क्या ही खूब ग़ज़ल कही है..सादर

Comment by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:47pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी।

तूफ़ान में.... सही सुझाव है, सर। वाक़ई 'भी' शब्द की ज़रूरत नहीं थी।
ईता दोष मुझे थोड़ा कम समझ आता है, सर। पहले मैंने कुछ और ऊला में रखा था --- अज़्म दिखाने की बात कर। लेकिन ईता का ध्यान आने पर मिसरा बदल कर ' धूल चटाने की बात कर' किया। सोचा था कि धूल चटाना मुहावरा होने की वजह से शायद ईता दोष न माना जाये।

आँखों से जाम .... शानदार इस्लाह सर। मिसरे में जान ही अब आई है। पहले मैं भी ख़ुद संतुष्ट नहीं था।

धुँधले में आपके कथन से मैं सहमत हूँ सर। typing mistake समझ लीजिये, ☺

और ये आपकी मुहब्बत है जो आप ग़ज़ल को अच्छी बता रहे हैं। वैसे मेरा संग्रह प्रकाशित हुए 8-10 दिन हो चुके हैं, सर। लेकिन किसी दोस्त के पास ही सभी प्रकाशित प्रतियाँ पड़ीं हैं। ले कर आने का आलस्य है। (हाँ, print से पहले का प्रूफ करने के बाद का मैटर pdf file के रूप में है, मेरे पास। )

आपने सही कहा, सर कि ओबीओ मंच पर बारीकियां सीखने को मिल जाती हैं। सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2018 at 9:06am

आ. दिनेश जी ,
कभी कभी बहुत आसान बातें हम सभी रचनाकार छोड़ कर अपनी ही सोच में उलझ जाते हैं.. इसलिए OBO जैसा मंच बहुत ज़रूरी है ताकि रचना की सरलतम समीक्षा हो सके ..
आपका मतला देखिये 
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर..... यहाँ सानी के भी की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी अगर आप तूफां को तूफ़ान कर लेंगे ..
तूफ़ान में  चराग़ जलाने की बात कर.. 
 

इसके अलावा चटाने और जलाने में इता दोष की हल्की सी झलक है ..
.
आँखों से जाम  पीने पिलाने की बात कर
.
धुंधले को धुँधले कर लें... अभी हाल ही में किसी रचना पर सौरभ सर की टिप्पणी से अनुस्वार और चन्द्र बिंदु का फर्क यूँ समझ में आया कि अनुस्वार दो मात्रिक रहेगा ..
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने  और जैसे जैसे आप   की पुस्तक प्रकाशन के क़रीब पहुँच रही है..आप की रचनाएं भी श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम होती जा रहीं हैं..
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

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