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वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं

122 122 122 122

******************

वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं,
हैं अपने मगर मुझको तड़पा रहे हैं ।

.
सिफर हो चला हूँ मैं ख़्वाबों से खुद ही,
तभी गम के बादल बहुत छा रहे हैं ।

.

बसी दिल में उनकी वो तस्वीर ऐसी,
कि बनकर वो साये चले आ रहे हैं ।

.

सुना है कि मिलती दुआओं से मंज़िल,
नमाज़-ए-महब्बत पढ़े जा रहें हैं ।

.

मैं रोया हूँ इतना छुपा कर वो आँहें,
पुराने थे रिश्ते जो इतरा रहे हैं ।

*******

मौलिक व अप्रकाशित

-------हर्ष महाजन

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 14, 2018 at 8:37pm

बहुत सुंदर प्रयास 

Comment by Harash Mahajan on April 14, 2018 at 7:07pm

आदरणीय कबीर सर आदाब । होंसिला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया । एक शब्द टंकण में छूट गया । तीसरे को अभी कोशिश करता हूँ । चौथे शेर में सुझाव सर आंखों पर सर । सर देखिएगा :

वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं,
हैं अपने मगर मुझको तड़पा रहे हैं ।

.
सिफर हो चला हूँ मैं ख़्वाबों से खुद ही,
तभी गम के बादल बहुत छा रहे हैं ।

.

बसी दिल में उनकी वो तस्वीर ऐसी,
कि बनकर वो साये चले आ रहे हैं ।

.

सुना है कि मिलती दुआओं से मंज़िल,
नमाज़-ए-महब्बत पढ़े जा रहें हैं ।

.

मैं रोया हूँ इतना छुपा कर वो आँहें,
पुराने थे रिश्ते जो इतरा रहे हैं ।

सादर

Comment by Samar kabeer on April 14, 2018 at 6:33pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

दूसरे शैर का सानी मिसरा और तीसरे शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं हैं ।

4थे शैर में 'नमाज़ें महब्बत' को "नमाज़-ए-महब्बत" कर लें ।

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