For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है )

(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)

हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |
मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |

कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में
देखने वाला कर बैठता प्यार है |

उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला
उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |

मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई
कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |

चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं
वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |

उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर
जो पढ़े ही नहीं रोज़ अख़बार है |

चाहे कुछ भी हो अंजाम तस्दीक़ अब
कर दिया उनसे उल्फ़त का इज़्हार है |

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 2091

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on March 18, 2018 at 10:32am

आदरणीय तस्दीक साहब,

मतले में मेरे ख्याल से ईता तो नहीं है पर कैद की समस्या है. दीदार और दिलदार में 'दार' सामान है अतः ग़ज़ल के हर काफिये में इसे दुहराना अनिवार्य हो जाएगा. अगर उचित समझें तो मतले के एक मिसरे में ऐसा काफिया रख ले जिसमे 'दार' न हो. 

सादर  

Comment by Ajay Tiwari on March 16, 2018 at 12:39pm

आदरणीय निलेश जी,

वीनस जी के लेख में आगे ये भी बताया गया है कि किन हालात में काफिया ईता दोष से मुक्त मन जाता है. उन्होंने लिखा है : 

\\(ख) एक मूल एक यौगिक काफ़िया - एक मूल काफ़िया और एक यौगिक काफ़िया लेने पर ईता दोष उत्पन्न नहीं हो सकता है क्योकि ऐसा करने पर हर्फ़े रवी का मिलान हो जाता है| 

उदाहरण - 
आग पानी हुई हुई न हुई
मेहरबानी हुई हुई न हुई  - बलबीर सिंह 'रंग'

मतला में पानी/ मेह्रबानी काफ़िया लेने पर मूल शब्द पानी का हर्फ़े रवी  यौगिक शब्द मेह्रबान+ई से तुकांत हो गया है और हर्फ़े रवी मिलने पर काफ़िया दोषमुक्त माना जाता है.\\

दीदार को मूल शब्द मानने पर हर्फे रवी  'र' होगा और काफिया दोषमुक्त होगा.

अगर यौगिक माने(दीद +आर) तो भी हर्फे रवी  'र' होगा और काफिया दोषमुक्त होगा.

सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 16, 2018 at 11:44am

ग़ज़ल पर प्रयास करने वाले साथियों ,मेरा भी आखरी कमेंट है ,मेरी ग़ज़ल के शेरों पर जो कमी निकाली गई  उसका जवाब अजय साहिब और मैं ने शायरी की किताबों से दिया है ,अब कोई उसको नहीं माने तो कोई क्या कर सकता है  । आप सब से मेरी दरख्वास्त है कि आप सब क़ाबिल और पढ़े लिखे लोग हैं । नेट पर इस बारे में  जानकारी मौजूद है , उरूज़ की उर्दू की गुणीजनों की किताबें मौजूद हैं, क़ाबिल सुख़नवर भी हैं , आप सही गलत का फैसला खुद कर सकते हैं । आज कल जो दुनिया में शायरी हो रही है उस में शोरा ऐसे दोष को मानते ही नहीं । । आप सब का चर्चा में शामिल होने का बहुत बहुत शुक्रिया----सादर

Comment by Samar kabeer on March 15, 2018 at 11:07pm

दोस्तो आदाब,

निलेश जी अपनी अंतिम टिप्पणी देचुके,और मेरी भी इस पोस्ट पर ये अंतिम टिप्पणी है ।

अभी कुछ देर पहले मैंने इस चर्चा के बारे में जनाब वीनस केसरी साहिब से फोन पर बात की ,उन्होंने मुझे ये मश्विरा दिया है कि जब कोई बात को समझना ही न चाहे और उस पर बह्स करता रहे तो बहतर यही है कि उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये,मैं आप सबसे ये निवेदन करता हूँ कि इस चर्चा को ध्यानपूर्वक पढ़ें और सही ग़लत का फ़ैसला करें,हाँ एक बात ये कि किसी के भी कहने में आकर इस दोष को अपनाने की कोशिश न करें ।

हाँ एक बात और इस सम्बन्ध में आज मैंने आली जनाव 'दरवेश भारती' साहिब से भी बात की थी वो भी 'दीदार' और 'दिलदार' क़ाफिये को दोषपूर्ण बता रहे हैं ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2018 at 10:15pm

जनाब नीलेश साहिब, मैं तो प्रयासी हूँ ज्ञाता नहीं लेकिन जो लिखता हूँ उसमें अगर कोई सही को गलत साबित करने की कोशिश करे ,तो कैसे स्वीकार हो । अब देखिए आप जल्दबाज़ी में फिर जाते जाते ग़लत कमेंट कर गए । मुझे पता नहीं आपकी जानकारी में है या आपने जानबूझ के ऐसा किया । ख़ैर, आपको बता दूं इज़ाफ़त सिर्फ अरबी और फ़ारसी के शब्दों में ही हो सकती है । चाहे वो अरबी--अरबी, फ़ारसी-फ़ारसी, अरबी -फारसी  हो ।देखिये 

शाम-ए-गम , दस्त-ए-वफ़ा, (यह फ़ारसी-अरबी ) हैं , ज़िक्र -ए-ख़ुदा (अरबी-फारसी) है । तस्वीर -ए-दिलदार(अरबी-फारसी), यह शास्त्र के विरुद्ध है या नहीं इसका फैसला आप खुद कर लीजिए , ताकि सीखने वालों को सही जानकारी हासिल हो सके ।वैसे सीखने की कोई उम्र नहीं होती ।----सादर

Comment by नाथ सोनांचली on March 15, 2018 at 9:37pm

इस ग़ज़ल के हवाले से इतनी बढ़िया चर्चा यकीनन हम नए सीखने वालों को बहुत कुछ सीखा देगी। इस चर्चा के लिए आद0 समर साहब, नीलेश भाई जी और अजय जी का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद। आखिर ओ बी ओ मंच ही ऐसा है जहाँ नीर क्षीर विभेद होता है और यहाँ हर कोई सीखने वाला है

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2018 at 9:36pm

जनाब नीलेश जी , आपने शायद अजय जी के कमेंट को ढंग से नहीं देखा । एक क़ाफ़िया मूल और दूसरा क़ाफ़िया यौगिक है तो वीनस जी के हिसाब से दोष मुक्त है । मतले के अलावा  अन्य शेर में दोष बताया है ।एक बार दोबारा 

उनके कमेंट को देखिए ,मतले में दोष नहीं होगा ( ख) ताकि सीखने वालों को सही सही जानकारी हासिल हो सके ।। सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2018 at 9:21pm

चूँकि तस्दीक साहब ने एक शेर में वफादार काफ़िया लिया है इसलिए यह ईता-ए-ख़फ़ी की श्रेणी का दोष है ..
अधिक स्पष्ट करने के लिए मैं निदा साहब की ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ ..
.

अपना ग़म ले के कहीं और जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए.
.

जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं

उन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाए.
.

ख़ुद-कुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में

और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए
.

बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं

किसी तितली को फूलों से उड़ाया जाए
.

क्या हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं

यूँ किया जाए कभी ख़ुद को रुलाया जाए
.

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए.
.
यहाँ भी सजाया और जाया में तक्रार होती अगर बाद के शेर में कहीं जाया इस्तेमाल    होता ..जो नहीं हुआ   है अत: निदा साहब की ग़ज़ल दोषमुक्त है और तस्दीक साहब की दोषपूर्ण ..
आप दोनों  महानुभावों का धन्यवाद कि   इस साहित्यिक बहस के चलते मैं   थोडा और   सीख पाया
सादर
(अंतिम टिप्पणी) 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2018 at 9:08pm

धन्यवाद आ. अजय जी..
आपने वीनस जी के आलेख का हवाला देकर मेरी मुश्किल आसान कर दी..
दीदार और दिलदार  को वीनस जी ने काजल और गंगाजल से समझाया है 
जहाँ दीदार मूल है वहीँ दिल दार दिल+दार है ठीक उसी तरह जैसे काजल  मूल है और गंगाजल ..गंगा+जल 
और इसे वीनस जी ने दोष बताया है ..
बहुत बहुत आभार ..
आशा है अब आप हठधर्मिता छोड़कर नये सीखने वालों का सही मार्गदर्शन    होने देंगे 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2018 at 9:04pm

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
13 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
16 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service