For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ुद से ये शर्मशार सा क्यों है (ग़ज़ल)

अरकान-: 2122  1212  22

ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है

आदमी बेक़रार सा क्यों है 

मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,

नेता हर इक गंवार सा क्यों है

आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,

फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है

मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर

तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है 

मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर

उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है 

उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,

'फिर हमें एतिबार सा क्यों है'

उम्र भर मौज की बहुत हमने,

पर बुढ़ापा ये भार सा क्यों है

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on December 29, 2017 at 5:14am

आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार ग़ज़ल की सराहना के लिए

Comment by नाथ सोनांचली on December 29, 2017 at 5:12am

आद0 तस्दीक अहमद खानजी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी। लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका।

Comment by नाथ सोनांचली on December 29, 2017 at 5:11am

आद0 महेंद्र कुमार जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हृदय तल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2017 at 10:11pm

सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 28, 2017 at 6:21pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Mahendra Kumar on December 28, 2017 at 3:14pm

उम्र भर मौज की बहुत हमने,

पर बुढ़ापा ये भार सा क्यों है ...बहुत ख़ूब!

उम्दा ग़ज़ल है आ. सुरेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2017 at 2:28pm

आद0 अजय तिवारी जी सादर प्रणाम। आपकी प्रतिक्रिया से हम बात समझ रहे थे। कोई और बूढ़ा न् समझ बैठे, इसलिये लिखना भी पड़ गया। हाहाहाहा हाहा ..... आपकी दुवाओ के लिए शुक्रिया।सादर

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 2:22pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी,

 \\मैं तो अभी जवान हूँ या अपने को जवान समझता हूँ\\ 

आप माशाअल्लाह! अभी तो गबरू जवान है. वो बात सिर्फ एक मजाक थी.

सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2017 at 2:02pm

आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी,कहना सार्थक हुआ।हृदय तल से आभार आपका

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2017 at 2:02pm
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी,कहना सार्थक हुआ।हृदय तल से आभार आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service