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ग़ज़ल -आग हम अंदर लिए हैं

2122 2122 2122 2122
वो किसी पाषाण युग के वास्ते अवसर लिए हैं ।
देखिये कुछ लोग अपने हाथ मे पत्थर लिए हैं ।।

है उन्हें दरकार लाशों की चुनावों में कहीं से ।
अम्न के क़ातिल नए अंदाज में ख़ंजर लिए हैं ।।

जो बड़े मासूम से दिखते ज़माने को यहां पर ।
हां वही नेता सुरक्षा में कई नौकर लिए हैं ।।

अब कहाँ इस दौर में जिंदा बची इंसानियत है ।
मुजरिमों को देखिये अब देह पर खद्दर लिए हैं।।

सुब्ह वो देते नसीहत भ्रष्टता से दूर रहिये ।
बेअदब होकर जो रिश्वत ही यहां शबभर लिए हैं ।।

ख्वाहिशें इनकी जुदा हैं खूब तानाशाहियां भी ।
ये चमन के वास्ते उजड़ा हुआ मंजर लिए हैं ।।

ज़ह्र फैला इस कदर, कि अब घुटन बढ़ने लगी है ।
जिंदगी के फैसले हमने भी शायद कर लिए हैं ।।

रह गए काबिल सभी कानून ये अंधा हुआ जब ।
वो तरक्की मुल्क में अब जात के दम पर लिए हैं।।

मिट गया उस मुल्क का नामोनिशां जिस मुल्क में सब ।
आलिमों ने भीख की खातिर बिछा बिस्तर लिए हैं।।

ऐ सियासत बाज आ तू कुछ तो कुदरत से डराकर ।
जल न जाए मुल्क सारा आग हम अंदर लिए हैं ।।

शब-रात
आलिम - विद्वान

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2017 at 8:00pm
आ.भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 4:31pm
आदरणीय त्रिपाठी जी, व्यंग्य रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
Comment by Samar kabeer on November 23, 2017 at 10:01pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हाँ वही नेता सुरक्षा में कई रहबर लिए हैं'
इस मिसरे में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,'रहबर'का अर्थ रास्ता दिखाने वाला होता है,जिसे आपने 'अंग रक्षक'के अर्थ में ले लिया है,इसे बदलने का प्रयास करें ।

'वो सुबह देते नसीहत ---
बेरहम होकर जो रिश्वत को यहाँ शब भर लिए हैं'
ऊला मिसरे में 'वो सुबह'की जगह "सुब्ह वो'करना उचित होगा,और सानी मिसरे में 'बेरहम'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "बेरह्म" दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में 'को'शब्द भर्ती का है, इन त्रुटियों को ठीक कीजियेगा ।

'मिट गया उस मुल्क का नामो निशाँ जिस मुल्क में सब
आलिमों ने भीख की ख़ातिर बिछा चादर लिए हैं'
ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'मुल्क'की जगह "देश"करना उचित होगा,और सानी मिसरे में आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की "चादर"शब्द स्त्रीलिंग है ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 1:14pm
है उन्हें दरकार लाशों की चुनावों में कहीं से ।
अम्न के क़ातिल नए अंदाज में ख़ंजर लिए हैं ।।बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब!! बहुत ही सामयिक शे'र है ।
शे'रत्रदर शे'रत्रदाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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