For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बशीर बद्र साहब की जमीन पर एक तरही ग़ज़ल

अरकान-: मफ़ाइलुन फ़्इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

नया ज़माना नया आफ़ताब दे जाओ
मिटा दे जुर्म जो वो इन्क़िलाब दे जाओ

हज़ार बार कहा है जवाब दे जाओ,
मैं कितनी बार लुटा हूँ हिसाब दे जाओ||

मुझे पसंद नही मरना इश्क़ में यारो,
मुझे है शौक़ नशे का शराब दे जाओ||

वो कह रहे हैं खड़े होके बाम पर मुझ से,
तमाशबीन बहुत हैं नक़ाब दे जाओ ||

करम करो ये मेरे हाल पर चले जाना
*उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ*||

अगर जगाना है सोए हुओं को ऐ यारो,
तुम इनको इल्म की कोई किताब दे जाओ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on October 26, 2017 at 6:57pm
आद0 आशुतोष जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और आत्मीय बधाई का दिल से आभार। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on October 26, 2017 at 6:56pm
आद0 समर साहब सादर प्रणाम। आपकी देन है जो कुछ ग़ज़ल विधा में कह पाता हूँ।आपकी टिप्पणी हमेशा कुछ बेहतर लिखने को बल देती है। हृदय से आभार आपका। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on October 26, 2017 at 6:54pm
आद0 अफरोज जी सादर अभिवादन।ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on October 26, 2017 at 6:53pm
आद0 सौरभ पांडेय जी, आद0 शिज्जू शकूर जी, आद0 नीलेश जी, आद0 समर साहब आप सभी की चर्चा में उपस्थिति से हमे भी बहुत कुछ स्पष्ट हुआ। सभी का हृदय से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on October 26, 2017 at 6:29pm
आद0 इन्द्रविद्याचस्पति तिवारी जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सुखनवाजी के लिए दिल से शुक्रिया। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 6:28pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी उस बेहद उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 5:52pm
अब मुझे एक गीत की पंक्ति याद आ रही है:-
'कैसे समझाऊँ...
Comment by Mohammed Arif on October 26, 2017 at 5:39pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,मेरा मौलकता से आशय शाइर के अपने स्वयं के शे'र और मिसरों से है । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 5:17pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 5:15pm

'न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए'
//बताते हैं कि ये निहायत खूबसूरत शैर एक तरही मुशायरे की ग़ज़ल से ही है. और इसी शैर पर गिरह लगाई गई है.ये सूचना चाहे सही हो या न हो,//
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,ये सूचना सो प्रतिशत सही है,ये मिसरा'न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम ही जाए'साहिब-ए-दीवान शाइर 'नज़्मी'साहिब का है जो उनके दीवान में मौजूद है,ये उनके मक़्ते का सानी मिसरा है, उनका मक़्ता मुलाहिज़ा फरमाएं :-

"कफ़न दाबे बग़ल में इसलिये फिरता हूँ ऐ 'नज़्मी'
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम ही जाए'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service