For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - इश्क में जार जार रोते हैं

फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
2122 1212 22

रात दिन बार बार रोते हैं।
इश्क में जार जार रोते हैं।

जब नशे में थे हम मज़े में थे,
जब से उतरा खुमार रोते हैं।

प्यार की अब पतंग नहीं उड़ती,
ठप्प है कारोबार रोते हैं।

आप से क्या मियाँ बताये हम
दिल हो जब बेकरार रोते हैं।

जब मैं रोता हूँ साथ में मेरे
सबके सब दोस्त यार रोते हैं।

वक्त बेवक्त उसके हाथों से,
जब भी पड़ती है मार रोते हैं।

अपने अपने सुभाव के कारण,
फूल हँसते हैं खार रोते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 871

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 5:47pm
जनाब राम अवध जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 4:16pm
सलीम रज़ा साहब बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 4:15pm
आदरणीय अफरोज सर इस ग़ज़ल में दोष है मैंआपकी बात से सहमत हूँ। टिप्पणी के लिए सादर आभार
Comment by SALIM RAZA REWA on October 26, 2017 at 3:17pm
आo ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 2:56pm
आदरणीय नीलेश जी आप सही कह रहे हैं ऐबेतनाफुर है लेकिन ग़ज़ल होती चली गई और इस दोष का कोई इलाज नहीं है। मैं भी समझ रहा था फिर ग़ज़ल के मोह जाल में फँस कर पोष्ट कर दिया। आपको बहुत बहुत शूक्रिया।
Comment by Afroz 'sahr' on October 26, 2017 at 2:00pm
आदरणीय राम अवध जी इस रचना पर बधाई आपको ।
काफ़िया और रदीफ़ में मुसलसल तनाफ़ुर हो रहा है। सादर,,,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 12:04pm

आ. राम अवध जी..
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ....
क़ाफिये और रदीफ़ में र-र   आने से तकरार हो रही है ...लेकिन ग़ज़ल उम्दा है 
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service