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"कल की फोटो देखी मैंने, बहुत सुंदर दिख रही थीं आप", उसने ऑफिस में अपनी कलीग से कहा|
"अरे कल वो व्रत था ना, उसमें तो सजना बनता था", मुस्कुराते हुए वह बोली|
"अच्छा, तो आप भी यह सब मानती हैं, मुझे लगा कि आप आजाद ख्याल की हैं", उसके लहजे में व्यंग्य था या सहानुभूति, वह समझ नहीं पायी|
"ऐसी बात नहीं है, मैं तो बस परंपरा निभाने के लिए ऐसा कर लेती हूँ| वैसे इसी बहाने थोड़ी शॉपिंग भी हो जाती है, पति से गिफ्ट भी मिल जाता है", थोड़ी सफाई सी देती हुए वह बोली|
"मतलब परंपरा की आड़ में सब कुछ ठीक है, तो फिर तो आप दिन भर भूखी प्यासी भी रही होंगी", उसने एक और तंज किया|
वह थोड़ा सकपकायी और कुछ सोच के बोली "अरे फास्टिंग करने से तो स्वास्थ्य सुधरता ही है, अब एक दिन इसी बहाने से ही सही| वैसे मैं इन सबसे उम्र बढ़ने में विश्वास नहीं करती"|
"ओह, खैर आप की तक़रीर मुझे अब तक याद है जब कोर्ट का फैसला तीन तलाक के बारे में आया था, कितनी उत्साहित और खुश थीं आप नारी स्वतंत्रता को लेकर",उसने एक और सवाल किया|
"वह तो ऐतिहासिक फैसला था, आखिर कोई कब तक औरतों को पांव की जूती बना कर रखेगा", उसके आवाज में अब थोड़ी हिम्मत आ गयी|
"मतलब दूसरे मज़हब की परंपरा और संस्कार हों तो गलत और आपके हों तो ठीक", उसने पूछा|
"और कुछ महिलाएं तो उनके यहाँ भी इसे परंपरा और धर्म की दुहाई देकर सही ठहरा रही थीं, वो सही था क्या", उसके प्रश्न लगातार चुभते जा रहे थे|
"देखिये, नारी को मानसिक गुलामी ने इतना जकड रखा है कि वह अपना सही और गलत सोच ही नहीं पाती| भला इसे कैसे सही ठहराया जा सकता है", उसकी आवाज फिर कमजोर सी पड़ती प्रतीत हुई|
"ओह, तो पति के उम्र के लिए भूखे प्यासे रहना मानसिक तरक्की की निशानी है? तब तो मेरी पत्नी बहुत पिछड़ी हुई है", उसके चेहरे पर मुस्कान छा गयी|
"अब यह अपनी अपनी सोच है, मैंने कहा ना कि उम्र बढ़ने में मेरा कोई विश्वास नहीं है"|
"अच्छा, कभी आपने अपने पति से कहा कि वह भी आपके लिए यूँ ही व्रत रखे, मतलब उम्र बढ़ने के लिए नहीं, बस ऐसे ही", उसने एक और सवाल किया|
वह अभी सोच ही रही थी कि उसने फिर कहा "या कभी आप के पति ने ही कहा हो कि वह आपके लिए व्रत रखेगा"|
वह सोच में पड़ गयी, ऐसा तो कभी नहीं हुआ| एक थकी निगाह से उसने सामने देखा और फींकी मुस्कराहट फेंकते हुए बोली "ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं, ये पुरुष तो कभी महिलाओं के लिए व्रत नहीं रखते"|
"खैर आपको ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था मुझे, उस दिन नारी स्वतंत्रता पर आपके विचार सुनकर मुझे अच्छा लगा था| लेकिन कल की आपकी छुट्टी और फोटो देखकर थोड़ा अफ़सोस हुआ इसलिए मैंने ऐसा कहा, माफ़ कीजियेगा", उसने हाथ जोड़ते हुए कहा और आगे बढ़ गया|
उसने अपना फोन उठाया और कल की डाली हुई सेल्फी और बाकी फोटो डिलीट करने लगी|
मौलिक अवं अप्रकाशित 

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Comment by विनय कुमार on October 12, 2017 at 10:02am

बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी, आपकी इस विस्तृर और उत्साह बढ़ाने वाली टिपण्णी ने उत्साह भर दिया, शुक्रिया 

Comment by विनय कुमार on October 12, 2017 at 10:01am

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम समर कबीर साहब 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 3:45pm

बढ़िया कथा और विषय भी बहुत सुंदर लिया है आदरणीय विनय सर , सदियों से चली आ रही करवाचौथ की परंपरा अब फैशन होती जाती रही है , मेरे मायके में यह त्यौहार नहीं होता , ससुराल में होता हैं . भाभियाँ यह व्रत नहीं करती इसके मायने यह नहीं की वे अपने पति से प्यार नहीं करती कहना का तात्पर्य सिर्फ इतना है यह त्यौहार प्रेम का प्रतिक लगा है हमेशा से , गर दोनों में बीच प्यार है समर्पण की भावना है तो इस त्यौहार को सार्थक मानती हूँ वरना तो यह सिर्फ रस्म ही हैं \ बहुत ही सुंदर तरीके से आपने यहाँ इस त्यौहार को लेकर कथा गढ़ी है जिसके लिए हार्दिक बधाई |

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 11:23am
जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by विनय कुमार on October 11, 2017 at 11:01am

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम शेख शहज़ाद साहब 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 10, 2017 at 7:02pm
समसामयिक एवं सर्वकालिक विचारोत्तेजक बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।

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