For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५६

ग़ज़ल- २२१ २१२१ १२२१ २१२ 

(फैज़ अहमद फैज़ की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल) 

हारा नहीं हूँ, हौसला बस ख़ाम ही तो है

गिरना भी घुड़सवार का इक़दाम ही तो है

बोली लगाएँ, जो लुटा फिर से खरीद लें 

हिम्मत अभी बिकी नहीं नीलाम ही तो है

साबित अभी हुए नहीं मुज़रिम किसी भी तौर
सर पर हमारे इश्क़ का इल्ज़ाम ही तो है

ये दिल किसी का है नहीं तो फिर हसीनों को
छुप छुप के यारो देखना भी काम ही तो है

उम्मीद क्या नयी करें बाज़ी ए इश्क़ से
डूबे हैं हम जो इस तरह इनआम ही तो है

आती है बात ऐ ख़ुदा सारी बहिश्त से
मेरी ये शायरी तेरा इलहाम ही तो है

ख़ारों का तुझको खौफ़ क्यों दिल के जहान में
गुल है तेरा बदन नहीं, गुलफ़ाम ही तो है 

आयेगी शब भी वस्ल की थोड़ा ठहर तो लो
हिज्रे वफ़ा की शाम भी इक शाम ही तो है

ख़ाना ख़राब हो गये तो है बवाल क्या
सर पर ये नीला आसमाँ भी बाम ही तो है

पी जाऊँगा मैं मैकदा इसका न खौफ़ रख
पकड़ा है जिसको हाथ से इक जाम ही तो है 

उसने जो छीनी नौकरी तो हैं बड़े मज़े
जाते नहीं हैं काम पे, आराम ही तो है

 

फिर से करेंगे हौसले पाने के यार को

हारा नहीं है दिल फ़क़त नाकाम ही तो है

 

माँ-बाप तिफ़्ल के लिए माबू’द क्यों न हों

परवरदिगार भी ख़ुदा का नाम ही तो है  

 

पूछे से तूने नाम जो अपना बता दिया

इतनी तवज्जो भी तेरा इकराम ही तो है

 

मैं भी तवाफ़े इश्क़ में सय्यार हो गया

कारे वफ़ा भी गर्दिशे अय्याम ही तो है

ढूंढोगे गर जो प्यार से दिल भी मिलेगा ‘राज़’
जाँ से तो है गया नहीं गुमनाम ही तो है

 

~ राज़ नवादवी

इक़दाम- किसी काम को करने के इरादे से आगे बढ़ना, पेशकदमी, अग्रसरता; ख़ाम- अनुभवहीन, अपरिपक्व; इलहाम- दिव्य प्रेरणा; ख़ार- काँटा; बहिश्त- स्वर्ग; गुलफ़ाम- गुलाब के फूल के रंग वाला, बहुत सुन्दर; वस्ल- मिलन; परवरदिगार- सबको पालने वाला, इश्वर का नाम; तवज्जो- ध्यान, अटेंशन देना; इकराम- कृपाएं; तवाफ़- चक्कर लगाना; सय्यार- ग्रह; गर्दिशे अय्याम – रात-दिन का चक्र  

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1142

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 8, 2017 at 5:42pm
'गुल तो नहीं तेरा बदन,गुलफ़ाम ही तो है'
इस मिसरे के लिए मैंने अर्ज़ किया था कि इसमें रवानी नहीं है,आपने ऊला मिसरा बदल दिया ।
सजदे वाला शैर अब ठीक है ।
जाम वाले शैर का क्या करेंगे ?
और तीसरे शैर के सानी मिसरे का क्या करेंगे ।
अरकान चेक कर लीजिए,सलीम रज़ा साहिब का संशय सही है ।
Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2017 at 3:56pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब, आपकी सुखननवाज़ी और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2017 at 3:54pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह साहब, आदाब! ग़ज़ल में आपकी शिरकत और नज़रे इनायत  का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. हाहाहा, ये नौकरी भी गज़ब की चीज़ है, नौकर भी चैन से नहीं बने रहने देती. जो हाल आपका है, वही मेरा है और यह शेर इसी ज़ाती तजुरबे से पैदा हुआ. खैर, दुआ करता हूँ कि आप जल्द ही किसी अच्छे काम पे बहाल हों. आदरणीय समर साहब इस सम्पूर्ण मंच पे सीखने वालों के उस्ताद हैं और उनकी इस्लाह हम जैसे तालिबाने इल्म के लिए एक वरदान है. शुभेच्छु ! 

Comment by Mohammed Arif on October 8, 2017 at 7:42am
आदरणीय राज़ नवादवी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र उम्दादा बयान कर रहा है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2017 at 6:33am
आद0 राजनवादवी साहब सादर अभिवादन। चुनचुनकर ख्याल लाते है आप। इसी शैर को लीजिये
उसने जो छीनी नौकरी तो हैं बड़े मज़े
जाते नहीं हैं काम पे, आराम ही तो है

यह शेर मेरे पर सौ फीसदी सही बैठता है, सबसे बड़ी बात आप कठिन उर्दू लब्जों का जो अर्थ दे देते हैं, वह मुझ जैसे लोगो के लिए सोने पर सुहागा हो जाता है। आपकी ग़ज़ल पर शेर द र् शैर दाद और मुबारकबाद।

आद0 समर साहब की इस्लाह से भी आप के साथ हमें भी सीखने को मिल रहा है।
Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2017 at 1:17am

आदरणीय समर साहब, आदाब ! आपकी हौसला अफज़ाई और इस्लाह के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. पिछली ग़ज़ल में सुझाये गये बदलाव कर दिये हैं और पोस्ट अप्रूवल पर है. इस ग़ज़ल पर भी आपकी टिप्पणियाँ बहुत मुफ़ीद हैं.  

"ख़ारों का इसको खौफ़ क्यों दिल के जहान में 
गुल तो नहीं तेरा बदन, गुलफ़ाम ही तो है" 

इस शेर में पहले मिसरे में 'इसको' की जगह 'तुझको' करने से क्या बात बनेगी? मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि यद्यपि कि तुम गुलाब के फूल जैसे हो, जो काँटों से घिरा होता है, तुम सच में गुलाब तो नहीं, इसलिए जहाँ तक दिली रिश्ते की बात है, तुम्हें खौफ़ करने की क्या ज़रुरत है, (वहाँ काँटे भी नहीं होंगे). बहरहाल, अगर ये तरकीब भी सही न लगे तो शेर खारिज़ कर दूंगा. 

सजदे वाले शेर को अगर यूँ लिखूं तो क्या बात बनेगी? 

"माँ-बाप तिफ़्ल के लिए मा'बूद क्यों न हों 

परवरदिगार भी ख़ुदा का नाम ही तो है"   

सादर !!

 

Comment by Samar kabeer on October 7, 2017 at 9:00pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'आँखों से छुप के देखना भी काम ही तो है'
इस मिसरे में 'आँखों'शब्द भर्ती का है :-
'छुप छुप के यारो देखना भी काम ही तो है'
'गुल तो नहीं तेरा बदन,गुलफ़ाम ही तो है'
इस मिसरे में रवानी नहीं है ।

'हाथों में जिसको है लिया इक जाम ही तो है'
इस मिसरे में 'है'शब्द भर्ती का है :-
'हाथों में जिसको ले लिया इक जाम ही तो है'

'सजदा करूँ में आपका पुरे करो जो ख़्वाब'
इस मिसरे में 'आपका'की जगह "आपको"होना चाहिये,और दूसरी बात ये कि सानी मिसरे से इस मिसरे का रब्त पैदा नहीं हो रहा है ।
Comment by राज़ नवादवी on October 7, 2017 at 4:01pm

आदरणीय सलीम रज़ा भाई, आपका ह्रदय से आभार. आपने जो कहा है, उसे ज़रूर देखूंगा. मेरा ज्ञान इस मामले में अभी पूर्ण नहीं है. अन्य सुधिजनों की प्रतिक्रियाओं का भी इंतज़ार रहेगा. सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 7, 2017 at 11:34am
राज भाई ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद,
मेरे ख्याल से बह्र 221 2121 1221 212 ये है. चेक कर लें...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
15 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service