For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५७

ग़ज़ल २२१ २१२१ १२२१ २१२ 
------------------------------------


लूटा जो तूने है मेरा, अरमान ही तो है
उजड़ा नहीं है घर मेरा, वीरान ही तो है

वादा खिलाफ़ी शोखी ए खूबाँ की है अदा
आएगा कल वो क़स्द ये इम्कान ही तो है

सीखेगा दिल के क़ायदे अपने हिसाब से
वो शोख़ संगदिल ज़रा नादान ही तो है

नज़रे करम कि हुब्ब के कुछ वलवले उठे
मेरे जिगर में आपकी ये तान ही तो है

आकर जो मेरे होंठ को छूती है तेरी साँस
होशो हवास के लिए तूफ़ान ही तो है

तुझसे किया गुरेज़ ये इलज़ाम मुझपे क्यों
ख़त जो लिखा है, प्यार का ऐलान ही तो है

कितना लडूँ ज़मीर से, कितना जहान से
दुनिया बदलते वक़्त की मीज़ान ही तो है

मरने की बात क्यों करें, चाहत दिखाने को
मरना किसी भी हाल में आसान ही तो है

वादे पे अपनी जान भी दे दें तो क्या ग़लत
इंसाँ में और है भी क्या, ईमान ही तो है

अच्छा है, ख़ुद शनास है, दिल भी है उसके पास
कुछ भी कहो पर आदमी इंसान ही तो है

रहता कहाँ हूँ, नाम क्या, करता हूँ काम क्या
सब कुछ पता है पर ख़ुदी अंजान ही तो है

आ जा तुझे नवाज़ दूँ जानो जिगर से मैं
ऐवाने दिल में तू मेरा महमान ही तो है

डरता है मेरे दिल में क्यों रखने से अपने पाँव
बस्ती ये आदमी की है, सुनसान ही तो है

घबरा न 'राज़' प्यार की करके तू पेशकश
उसने तो 'ना' किया नहीं, हैरान ही तो है

~ राज़ नवादवी

खूबाँ- ख़ूब का बहुवचन, सुन्दर स्त्रियाँ, माशूकाएं
क़स्द- संकल्प, इरादा, कामना
इमकान- संभावना
हुब्ब- प्रेम, स्नेह, मुहब्बत
वलवले- उत्साफ, उमंग, आवेग, जोश
तान- तीर मारना, कटाक्ष
गुरेज़-उपेक्षा
ज़मीर- अंतःकरण
मीज़ान- तराजू
ख़ुद शनास- स्वयं को पहचानने वाला
ऐवान- महल, शाही महल

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 1153

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 9:17pm

आदरणीय निलेश जी, आपकी और समर साहब की बातों पे गौर कर रहा था तो ये ख्याल आया, सोचा शेयर करूँ -

"मानी जिन्होंने बात वो बनते चले गए 

बाकी तो याँ पे आये थे अच्छे, चले गए"

हाहाहा, सादर  

Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 9:11pm

आदरणीय निलेश जी, धन्यवाद. गुरेज़ के लिए आपका सुझाव अच्छा है. हाहाहा, इस बार भी आप मतला बदलवा कर रहोगे. बहुत खूब, कुछ अच्छा ही निकलेगा. सादर! 

Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 9:09pm

आदरणीय सुशील सरना जी आपका ह्रदय से आभार . सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 8:37pm

आ. राज़ साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ...
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नदारद पाया ...  दोनों  जगह मेरा ११ पर आने से एक सी जुगत लगी है..देखिएगा 
तुझसे किया गुरेज़ ये इलज़ाम मुझपे क्यों ...या मैंने किया गुरेज़??? मिसरा अस्पष्ट है 
देखिएगा 
सादर 

Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 8:01pm

आदरणीय समर साहब, बहुत खूब मिसरा आपने सुझाया है. धन्यवाद. आपकी बातों से सहमत हूँ मगर हम ये कहते हैं: 

"दिल्ली बार बार उजड़ी और बसी", न कि "दिल्ली बार बार वीरान हुई और बसी" क्योंकि दोनों शब्द मिलते जुलते होते हुए भी अलग अलग मानी रखते हैं, उजड़ने में एक भौतिक पक्ष भी है. सादर 

Comment by Sushil Sarna on October 11, 2017 at 7:51pm

खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय। 

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 7:04pm
मतले के सानी मिसरे पर आपने क्या सोचकर कहा है,ये अहम नहीं,सवाल ये है कि पाठक क्या सोचता है ।
'क़स्द'वाले मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'आएगा वो ज़रूर ये इमकान ही तो है'
आपके विकल्प सुरक्षित हैं ।
Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 6:50pm

 जनाब समीर साहा, आदाब. आपकी इस्लाह का लाख शुक्र. ये अर्ज़ है कि भरी महफ़िल में भी वीरानियाँ थीं, उजड़े दयार अच्छे हैं, जी घबराता नहीं. सजा हुआ है मेरा घर, उजड़ा नहीं, वीरान है, कोई आता नहीं ! तो मैंने इस तरह उजड़े और वीरान को लिया है. क़स्द का अर्थ जो लुगत में है: (१) संकल्प, निश्चय, इरादा; (२) इच्छा, कामना, ख्वाहिश. मैंने दूसरे वाले अर्थ में लफ्ज़ का इस्तमाल किया है. अगर फिर ही ग़लत है तो बताएं, कोई नया लफ्ज़ सुझाने की कृपा करें, या मिसरा, अन्यथा शेर हटाना होगा. सादर. 

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 6:00pm
'उजड़ा नहीं है घर मेरा वीरान ही तो है'-उजड़ना और वीरान होना एक ही तो है भाई ?
"आएगा कल वो,क़स्द ये इमकान ही तो है'
इस मिसरे में 'क़स्द'सही अर्थ नहीं दे रहा है ।
Comment by राज़ नवादवी on October 11, 2017 at 4:10pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी, ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रियाओं का ह्रदय से आभार. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service