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जिसे ख़यालों में रखता हूँ शायरी की तरह.
 मुझे वो जान से प्यारा है जिंदगी की तरह.
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 क़सम जो खाता था उल्फ़त में जीने मरने की.
 वो सामने  से गुज़रता है अजनबी की तरह.
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 यूँ ही न बज़्म  से  तारीकियाँ  हुईं रुख़सत.
 कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह.
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 खड़े हैं छत पे  हटा कर निक़ाब वो रुख़ से.
 अंधेरी शब भी यूँ रोशन है चांदनी की तरह.
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 अगर  बिखर  गए  अपना  वुजूद  खो  देंगे.
 जुड़े रहें यूँ ही फूलों की इक लड़ी की तरह.
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 तेरे  ही  प्यार की  ख़ुशबू  है मेरी साँसों में.
 मेरी हयात में शामिल है तू ख़ुशी की तरह.
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 ये  मांगता  है "रज़ा" हर  घड़ी दुआ रब से.
 कभी  तो जी लूँ ज़रा देर आदमी कि तरह.
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"मौलिक व अप्रकाशित"
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