For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५२

बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन: 2122 2122 2122 2122

---------------------------------------------------------------------------------

 

 

है जिगर में कुछ पहाड़ों सा, पिघलना चाहता है

मौसम-ए-दिल हो चुका कुहना बदलना चाहता है

 

छोड़कर सब ही गये ख़ाली है दिल का आशियाना 

अश्क़ बन कर तू भी आँखों से निकलना चाहता है

 

चोट खाकर दर्द सह कर बेदर-ओ-दीवार होकर

दिल तेरी नज़र-ए-तग़ाफ़ुल में ही जलना चाहता है

 

ज़ख्म पिछले मर्तबा के भूल बैठा क्या करें हम  

तिफ़्ल है ये दिल वफ़ा में फिर मचलना चाहता है

 

क्या मुदावा हो किसी का खू तेरी जिसको लगी हो

जो तेरी झूठी क़सम पर भी बहलना चाहता है    

 

होश आमादा है उड़ने को मेरे दीवानगी में

हाशिया तेरी हया का भी फिसलना चाहता है

 

रोज़मर्रा की कदो काविश में जलकर थक गये हैं

माह ज़िम्मेदारियों का अब तो ढलना चाहता है

 

है ये कम क्या आदमी अपनी बसारत को ज़िया दे 

क्यों भला वो सूरते दुनिया बदलना चाहता है  

 

~राज़ नवादवी

 

कुहना- पुराना; नज़रेतग़ाफ़ुल- उपेक्षा की दृष्टि; तुफ्ल- बच्चा; मुदावा- उपचार; खू- आदत; पैरहन- कपड़ा; कदोकाविश- भागदौड़; माह- चाँद; बसारत- दृष्टि, नज़र  

 

‘मौलिक एवं अप्रकाशित’   

Views: 886

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 8, 2017 at 3:23pm
आपसे फोन पर चर्चा कर चुका हूँ,ग़ज़ल में संशोधन कर लीजिए ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 8, 2017 at 2:22pm

आदरणीय राज नवादवी जी ..बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुयी है  आपने उर्दू शब्दों का अर्थ भी साथ में देकर ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाने का पूरा मौका दिया है ..काबिले तारीफ़ इस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 11:35pm

जनाब समर कबीर साहब, ऐब-ए-तनाफ़ुर वाले शेर को क्या इस तरह तब्दील करना सही होगा?

आदमी अपनी बसारत को ज़िया दे क्या ये कम है     

क्यों भला वो सूरतेदुनिया बदलना चाहता है  

कृपया मशविरा दें! सादर. 

 

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 11:13pm

जनाब संतोष खिर्वाड़कर जी, ग़ज़ल की सराहना का ह्रदय से आभार. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 11:11pm

आदाब अर्ज़ है जनाब समर कबीर साहब, आपकी दाद-ओ-इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया. तिफ़्ल को तुफ्ल लिखने की भूल हुई है. पैरहन वाले शेर का क्या करूँ? ऐब-ए-तनाफुर है तो फिर 'बदल ले' कभी साथ नहीं आएँगे, समझ गया.  खामखाँ के बदले 'बेवजह' लिखना मुनासिब होगा? गुजारिश है कि इस्लाह दें, ग़ज़ल को एडिट करता हूँ तो पुराने सभी कमेंट्स ग़ायब हो जाते हैं, कृपया मार्गदर्शन करें. सादर.  

Comment by Samar kabeer on September 7, 2017 at 10:20pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

चौथे शैर के सानी मिसरे में आपने'तुफ़्ल'लफ़्ज़ इस्तेमाल किया है,और इसका अर्थ 'बच्चा'लिखा है,आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि'तुफ़्ल'का अर्थ होता है,और बच्चा के लिये लफ़्ज़ है"तिफ़्ल"देखियेगा ।

'पैरहन तेरी हया का भी फिसलना चाहता है'
इस मिसरे में 'पैरहन'के लिये 'फिसलना'लफ़्ज़ मुनासिब नहीं है,ग़ौर कीजियेगा ।

आख़री शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'बदल ले',और सानी मिसरे में 'खामखां'लफ़्ज़ ग़लत है,सही लफ़्ज़ है "ख़्वामख़्वाह",देखियेगा ।
Comment by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 9:17pm
बहुत ख़ूब ....शानदार ग़ज़ल सादर!!
Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 8:09pm

आदरणीय सुशील सरना  जी, आपकी प्रशंसा का ह्रदय से आभार. सादर 

Comment by Sushil Sarna on September 7, 2017 at 8:02pm

होश आमादा है उड़ने को मेरे दीवानगी में
पैरहन तेरी हया का भी फिसलना चाहता है

वाह बहुत ही खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आदरणीय आपने अपनी इस बेहतरीन ग़ज़ल में। दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service