For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल- आज ढ़लती धूप सी हैं

2122/2122/2122/212

आज ढ़लती धूप सी हैं दादी नानी फिर कहाँ
तिफ़्ल सुनले चाँद परियों की कहानी फिर कहाँ

घर घरोंदे गुड्डे गुडिया राजा रानी फिर कहाँ
कश्तियाँ कागज की ये बारिश का पानी फिर कहाँ

छोड़ ये टीवी मोबाइल दौड़कर तितली पकड़
बचपना जी भरके जी ऐसी रवानी फिर कहाँ

पेड़ों की शाखें हैं सूनी खेल के मैदान चुप
जूझना हालात से सीखे जवानी फिर कहाँ

माँ के आंचल से पिता के कांधे तक फैली थी जो
बचपने की वो हुकूमत हुक्मरानी फिर कहाँ

बात हो उपदेश देने की किसी को मुफ्त में
चूकता है ऐसा मौका कोई ज्ञानी फिर कहाँ

बाग़बाँ दुश्मन बना है तेरा एे नन्ही कली
बाग में तुझको मयस्सर बाग़बानी फिर कहाँ

हर तरफ बेहूदा फ़िकरे तंज पीछे दौड़ते
अपने पर फैलाएगी बिटिया सयानी फिर कहाँ

घर नया गाड़़ी नई तहज़ीब भी जिसकी नई
वो रखे माँ बाप सी चीजें पुरानी फिर कहाँ

कोख का मोती वतन पर जो ख़ुशी से वारती
कौन है उस माँ सा दानी उसका सानी फिर कहाँ
----------------------------------------------------------------------------
गजेन्द्र श्रोत्रिय
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 900

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gajendra shrotriya on September 9, 2017 at 1:51pm
बहुत शुक्रिया जनाब सलीम रजा साहब।
Comment by SALIM RAZA REWA on September 6, 2017 at 8:59pm
भाई गजेंद्र जी अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद.
Comment by Gajendra shrotriya on September 6, 2017 at 12:46pm
बहुत आभार आ० बृजेश जी। धन्यवाद।
Comment by Gajendra shrotriya on September 6, 2017 at 12:44pm
आपका बहुत बहुत आभार आ० महेन्द्र जी।
Comment by Gajendra shrotriya on September 6, 2017 at 12:43pm
आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ आ० गुरप्रीत सिंह जी। धन्यवाद।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 5, 2017 at 10:58pm
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय..सादर
Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2017 at 3:51pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आ. गजेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Gurpreet Singh jammu on September 5, 2017 at 10:50am

एक से एक खूबसूरत अशआर से सजी इस गज़क के लिए आपको दिल से बधाई आदरणीय गजेंद्र जी 

Comment by Gajendra shrotriya on September 3, 2017 at 9:57pm
आदरणीय अजय कुमार जी। आभारी हुँ आपका।
Comment by Gajendra shrotriya on September 3, 2017 at 9:54pm
बहुत शुक्रिया जनाब मो० आरिफ साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
26 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service