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ग़ज़ल - अब हक़ीकत से ही बहल जायें ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212   22 /122
मंज़रे ख़्वाब से निकल जायें

अब हक़ीकत से ही बहल जायें

 

ज़ख़्म को खोद कुछ बड़ा कीजे

ता कि कुछ कैमरे दहल जायें

 

तख़्त की सीढ़ियाँ नई हैं अब

कोई कह दे उन्हें, सँभल जायें

 

मेरे अन्दर का बच्चा कहता है  

चल न झूठे सही, फिसल जायें

 

शह’र की भीड़ भाड़ से बचते

आ ! किसी गाँव तक निकल जायें

 

दूर है गर समर ज़रा तुमसे

थोड़ा पंजों के बल उछल जायें

 

चाहत ए रोशनी में दम है अगर

जुगनुओं की तरह से जल जायें   

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 10:34am

आदरनीय समर भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

'मेरे अन्दर का बच्चा कहता है
चल न झूटे सही,फिसल जायें'   --  इस शेर मे मैने यह कहने की कोशिश की है -
'मेरे अन्दर का बच्चा कहता है  -- इसका अर्थ मैने ऐसे निकाला --  अर्थात , आज मै बच्चा नहीं हूँ , चाहे जवान हूँ या बूढ़ा -- लेकिन मेरे अन्दर अभी बच्चा ज़िन्दा है - और वही सानी की बात कह रहा है , कि , चल अपना बचपना याद करें और झूठे ही सही फिसल जायें -- ( छिपा सच है, कि जवानी मे सँभल के चलने की हिदायत आम दी जाती है )  जिससे ऊब कर अन्दर का बच्चा ये कह रहा है ।  आशा है मै अपनी बात समझा पाया हूँ ।

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:30am
आद0 गिरिराज जी सादर अभिवादन, बहुत खूबसूरत अशआर, पढ़कर मजा आया, शेर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ, सादर
Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:30am
आद0 गिरिराज जी सादर अभिवादन, बहुत खूबसूरत अशआर, पढ़कर मजा आया, शेर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ, सादर
Comment by Mohammed Arif on August 23, 2017 at 11:02pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब,लाजवाब ग़ज़ल है । नये अंदाज़ के अश'आर हैं । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 10:48pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'मेरे अन्दर का बच्चा कहता है
चल न झूटे सही,फिसल जायें'

सानी मिसरे में क्या कहना चाहते हैं आप कुछ स्पष्ट करने का कष्ट करें ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2017 at 9:47pm

आदरणीय नीरज भाई , गज़ल की सराहना और एक शेर पसंद करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by Niraj Kumar on August 23, 2017 at 9:34pm

आदरणीय गिरिराज जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

तख़्त की सीढ़ियाँ नई हैं अब

कोई कह दे उन्हें, सँभल जायें

यह शेर इशारों में बात कहने का एक नमूना है.

सादर 

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