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 नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या ।
 बदलनी अब तुम्हें सरकार है क्या ।।
 
 बड़ी मुश्किल से रोजी मिल सकी है ।
 किया तुमने कोई उपकार है क्या ।।
 
 सुना मासूम की सांसें बिकी हैं ।
 तुम्हारा यह नया व्यापार है क्या ।।
 
 इलेक्शन लड़ गए तुम जात कहकर ।
 तुम्हारी बात का आधार है क्या ।।
 
 यहां पर जिस्म फिर नोचा गया है ।
 यहां भी भेड़िया खूंखार है क्या ।।
 
 बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।
 मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या ।।
 
 हिजाबों में खरीदारों की रौनक ।
 गली में खुल गया बाज़ार है क्या ।।
 
 बहुत दिन से कसीदे लिख रहे हैं ।
 कलम में आपके भी धार है क्या ।।
 
 कदम उसके जमीं पर अब नहीं हैं ।
 हुआ कुछ चांद का दीदार है क्या ।।
 
 तबस्सुम पर तेरे हैरत हुई है।
 गमों की हो गयी भरमार है क्या ।।
 
 महज मजहब मेरा पूछा था उसने ।
 कहा तू देश का गद्दार है क्या ।।
 
 नवीन मणि त्रिपाठी
 मौलिक अप्रकाशित
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