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अंधी जनता, राजा काना बढ़िया है ...गज़ल

22-22-22-22-22-2

नये दौर का नया ज़माना, बढ़िया है
अंधी जनता, राजा काना, बढ़िया है

अब तो है यह उन्नति की नव परिभाषा,
जंगल काटो, पेड़ लगाना, बढ़िया है

अपना राग अलापो अपनी सत्ता है,
अपने मुंह मिट्ठू बन जाना, बढ़िया है

नई सियासत में तबदीली आई है,
आग लगा कर आग बुझाना, बढ़िया है

हत्या करना बीते युग की बात हुई,
अब दुश्मन की साख मिटाना, बढ़िया है

अगर कोख में बिटिया अब तक जिंदा है,
खूब पढ़ाना, ख़ूब बढ़ाना, बढ़िया है

नहीं ज़ियादा की हमको दरकार सुनो,
रोज उड़ाना, रोज़ कमाना, बढ़िया है

सारी बस्ती जल जाए तो जल जाए,
अपना छप्पर आप बचाना,बढ़िया है

~ बलराम धाकड़
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment

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Comment by Balram Dhakar on August 22, 2017 at 3:37pm
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी, बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 9:52pm
जनाब बलराम जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं है,और छटे और सातवें शैर के बारे में मैं जनाब नीरज जी से सहमत हूँ ।
अस्ल में ये बह्र मात्रिक है, इसलिये कभी कभी जो शैर मात्रा गणना के हिसाब से सही होते हुए भी लय में नहीं कहे जा सकते,इस बह्र की ये बात ध्यान में रखने योग्य है कि अल्फ़ाज़ की बंदिश का इसमें बड़ा अहम रोल होता है ।
Comment by नाथ सोनांचली on August 20, 2017 at 3:38pm
आदरणीय बलराम धाकड़ जी सादर अभिवादन, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कहीं आपने,। शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Balram Dhakar on August 20, 2017 at 12:54pm
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 10:10am
आदरणीय बलराम धाकड़ जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन सामयिक -प्रासंगिक ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Balram Dhakar on August 19, 2017 at 10:26pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी एवं आदरणीय नीरज जी,
कमेंट के लिए सादर धन्यवाद।

समीक्षा की प्रतीक्षा में...
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 19, 2017 at 7:05pm
बहुत बढ़िया कटाक्ष करते हुए बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय बलराम धाकड़ जी। विधा संबंधी दोषों पर वरिष्ठजन की टिप्पणियों पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
Comment by Niraj Kumar on August 19, 2017 at 4:25pm

आदरणीय बलराम जी,

धारदार ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद.

आपने अरकान नहीं लिखे हैं जो इस पटल पर एक सामान्य नियम है. मेरे ख्याल से ये 'फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा' है. लेकिन इस बहर में छठे और सातवें शेर के पहले मिसरे फिट हो पायेंगे इसमें मुझे संदेह है. विज्ञजनों की राय इस सम्बन्ध में निर्णय करेगी. 

सादर

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