For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --इस्लाह के लिए

      (122-122-122-12)

रहे हम तो नादां ये क्या कर चले
कि दौर ए जफ़ा में वफ़ा कर चले।

वो तूफ़ान के जैसे आ कर चले
मेरा आशियाना फ़ना कर चले।

रक़ीबों की तारीफ़ की इस क़दर
कि चहरा मेरा ज़र्द सा कर चले'

कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से
हम आँखों में सपने सुला कर चले

ज़मीं हमको बुज़दिल का ताना न दे
तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले।

तड़पते रहे अधजले कुछ हरूफ़
वो जब मेरे खत को जला कर चले।

बताओ मुझे नींद आएगी क्या
कि वो मेरा बिस्तर बिछा कर.... चले।

 

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 24, 2017 at 12:26pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।
Comment by राज़ नवादवी on August 24, 2017 at 12:22pm

कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से
हम आँखों में सपने सुला कर चले

तड़पते रहे अधजले कुछ हरूफ़ 

वो जब मेरे खत को जला कर चले।

बताओ मुझे नींद आएगी क्या 

कि वो मेरा बिस्तर बिछा कर चले।

जनाब गुरप्रीत सिंह जी, ये तीनों अशआर ख़ासतौर से पसंद आए. दाद क़ुबूल करें, सादर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:13pm

आदरणीय गुरप्रीत भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है जो आवश्यक सुधार के बाद और बेहतरीन हो गई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on August 24, 2017 at 10:49am

जी बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी,,, आपके सुझावों के अनुसार ग़ज़ल में बदलाव करता हूँ 

Comment by Samar kabeer on August 20, 2017 at 11:04pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,एक बात आपको बताना भूल गया था कि दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'आशिआना'को "आशियाना" कर लें ।
आपके अशआर सुधारने की कोशिश की है देखिये कैसे लगते हैं :-
'रक़ीबों की तारीफ़ की इस क़दर
कि चहरा मेरा ज़र्द सा कर चले'

'कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से
हम आँखों में सपने सुला कर चले'

'ज़मीं हमको बुज़दिल का ताना न दे
तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले'
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 20, 2017 at 10:37am
शुक्रिया आदरणीय ब्रजेश कुमार जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 20, 2017 at 10:36am
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी शुक्रिया....जी बिल्कुल आदरणीय समर सर की कही बातों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में कार्य करने की कोशिश रहेगी
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 20, 2017 at 10:33am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी..बहुत बहुत शुक्रिया ..कहना चाहूंगा की मैं जो भी लिखता हूँ वो मुझे कुछ दिन अच्छा लगता है ऐसा लगता है कि मैने एक बेहतरीन ग़ज़ल लिख दी है..लेकिन कुछ दिनों बाद वो ही मुझे सधारण सी लगने लगती है...और मुश्किल तब होती है जब कई बार लाख कोशिश करने पर भी मैं कमियों को सुधार नहीं पाता हूँ..इसीलिए इस्लाह केलिए ग़ज़ल इस मंच के समक्ष रख देता हूँ...
इस ग़ज़ल के तीसरे शेर को लेकर भी मैने बहुत माथा पच्ची की लेकिन बात नही बन पाई..हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 20, 2017 at 10:25am
आदरणीय समर सर आदाब ...पहले तो देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ और आपका शुक्रगुजार हूँ आपने ग़ज़ल पर विस्तार से टिप्पणी की और आपने इन अशआर को अलग पहलुओं से देखने का मौका ..आपने जिन बिंदुओं पर प्रश्न उठाए, उन पर मेरी क्या सोच रही है..यहां लिखने की कोशिश कर रहा हूँ..आपकी की किसी भी बात से कतई असहमति नहीं जता रहा हूँ..
वो ज़िक्र अपनी रंगीनी का कर चले
ये चेहरा मेरा ज़र्द सा कर चले।
इस शेर में ये कहना चाहा है कि वो मेरे बिना कितने खुश हैं जब उन्होने ये जिक्र किया तो मैं दुखी हो उठा..लेकिन जाहिर है मैं सही तरीके से नही कह पाया
दबे पांव बिन कोई आहट किए
हम आँखों में सपने सुला कर चले।
इस शेर में जोर इस बात पर है कि वो सपने जिन के पूरे होने की उम्मीद नहीं है उनको बड़ी मुश्किल से सुला कर हम उनके पास से दबे पाँव उठते हैं कि कहीं किसी आहट से वो जाग न जाएँ ..उन्हें सुला कर हम कहाँ चले मुझे लगा कि ये बात अगर न भी जाहिर हो तो चलेगा

ज़मीं बुज़दिली से जो वाक़िफ़ हुई
तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले।
इस शेर मे ये कहना चाहा है कि हम बुजदिल हैं और अब तक नज़रें झुका कर चलते रहे हैं..लेकिन अब हमें लगने लगा कि जब हम हमेशा नज़रें झुका कर चलते हैं तो शायद ज़मीन को पता चल गया है कि हम बुजदिल हैं और हमें लगता है कि इस बात पर ज़मीन हम पर हँस रही है... तो इसलिए हम अब नज़रें उठा कर चलने लगे हैं...तो कोई अगर हमें नज़रें उठा कर चलते हुए देख कर ये समझे कि हम आत्मसम्मान, आत्मविश्वास या अकड़ से चल रहे हैं तो वो गलत होगा.
जो तीन शेर वो से उनमें भी कुछ बदलाव करने कि कोशिश करूँगा और हूरूफ को भी हरूफ कर लूँगा सर जी ..
यह ग़ज़ल मैने ग़ज़ल सीखने के बिल्कुल शुरुआती पड़ाव में कही थी..लेकिन अब आप के बताए अनुसार मुझे भी लग रहा है कि अशआर में बात साफ नहीं हुई....आप से और अन्य सदस्स्यो से इन अशआर को सुधारने हेतु सुझावों का निवेदन करता हूँ सर जी...
बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2017 at 10:37pm
बहुत बहुत बधाई आदरणीय..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service