For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो रहा कलरव श्यामा का  

उठो देखो बाहर 

सूर्य उठा रहा चादर 

हो रही है भोर 

नारंगी नभ से खिलता 

बादलों को चीरता हुआ 

कह रहा है हमसे 

हो रही है भोर 

पत्तों पर ओस शर्माती 

देख सूर्य की किरणे 

खुद को समेटती कहते हुए 

हो रही है भोर 

मिट्टी की सौंधी सी महक 

कलियों का खिलना 

धुप देख मुस्कुराना कहता है 

हो रही है भोर 

उठो छोडो बिस्तर अब तो 

देखो बाहें फैलाये खड़ा नभ है 

और पुकार रही सुबह की बेला 

हो रही है भोर 

मौलिक और अप्रकाशित 

 

Views: 1346

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 9, 2017 at 8:09pm

आदाब आदरणीय समर भाई जी , आपका कहना उचित है , मैं दोनों ही चीजो को दर्शा रही थी की सूरज के आने के बाद चाँद और तारे उसकी रौशनी से ओज़ल हो जाते हैं , गर यह भाव यहाँ गलत हो रहा है तो कुछ और सोचती हूँ | सादर |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 9, 2017 at 8:05pm

धन्यवाद आदरणीय शहजाद भाई |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 9, 2017 at 8:05pm

धन्यवाद् आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी | 

Comment by Samar kabeer on August 9, 2017 at 6:40pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,कविता का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जब सूरज ने चद्दर उठा दी तो उसके बाद चाँद तारों का क्या ज़िक्र,सूरज उसी समय चादर उठाता है जब चाँद तारे आकाश से ग़ायब हो जाते हैं,तार्किकता की दृष्टि से कविता बहुत कमज़ोर है, देखियेगा ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2017 at 6:12pm
भोर का बढ़िया पेनोरमा पेश किया है आपने। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
Comment by Mohammed Arif on August 9, 2017 at 8:33am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, प्रात:कालीन बेला का बहुत ही सादगीपूर्ण चित्रण किया है आपने ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
21 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
14 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service