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छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक)

छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक) 
विधान 32 वर्णों के चार समतुकांत चरण, 16 16 वर्णों यति अनिवार्य
8,8,8,8 पर यति उत्तम अंत में ललल अर्थात लघु लघु लघु या नगण अनिवार्य ।

 

सूखे कूप हैं इधर ,गंदे स्रोत हैं उधर,प्यासे वक़्त के अधर,मीठा नीर है किधर|

मैली गंग है उधर,देखें नेत्र ये जिधर,रोयें धरा ये अधर,जाए शीघ्र ये सुधर|

कोई भाव है न रस,कैसे शुष्क हैं उरस,वाणी नहीं है सरस,शोले रहे हैं बरस|   

बातों बात ये बरस,इर्ष्या रहे हैं परस,आँखें गईं हैं तरस, पाऊँ राम के दरस|

 

घाटी ढूँढती चमन,भौरें ढूँढते सुमन,पाखी ढूँढते रमन, साँसें दर्द का गमन|

पूछे ये उदास मन,होते आज क्यूँ दमन, सीमा माँगती अमन,वीरों आपको नमन|

साँची सोच व कहन,ऊँचा श्रेष्ठ हो रहन,नेकी शुद्धता पहन, इच्छा करो ये वहन|

भाई, मित्र, हे बहन, ईर्ष्या द्वेष ये गहन, पूरे करो तो दहन, होंते नहीं ये सहन|. 

------मौलिक एवं अप्रकाशित    

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2017 at 1:01pm

आद० समर भाई जी आपका  बहुत- बहुत शुक्रिया| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2017 at 1:00pm

आद० मोहम्मद आरिफ जी आपको ये घनाक्षरी पसंद आई मेरा लिखा सार्थक हुआ |आपका बहुत बहुत आभार |

जैसा की आपने कहा है ये दो घनाक्षरी हैं दोनों के भाव अलग अलग है पहली घनाक्षरी --स्वभाव की  प्रवृत्ति  पर है चाहे वो प्रकृति की हो या मानव की 

दूसरा भाव  -- सुख शान्ति  प्राप्ति की खोज --चाहे वो इंसान  हो  या  कोई भी 

Comment by Samar kabeer on August 2, 2017 at 3:42pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा छन्द रचे हैं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on August 2, 2017 at 2:50pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब , विजया घनाक्षरी छंद से परिजय हुआ । छंद की जानकारी में इजाफा हुआ । सबसे पहले इसके लिए आपको धन्यवाद । आपके इस छंद में केवल शब्दों का काव्य चमत्कार ज़ियादा नज़र आया । भाव भूमि भी अलग-अलग दिखाई दे रही है । किसी प्रभावशाली विषय को लेकर ये छंद नहीं है ।अलबत्ता आख़िर-आखिर में थोड़ा देश भक्ति का पुट नज़र आया । इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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