For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(इस वर्ष आ रही ४५ वीं वर्षगाँठ के लिए

जीवन-संगिनी प्रिय नीरा जी को सप्रेम समर्पित)

                      ------

हो विश्वव्यापी सूर्य

या हों व्योम की तारिकाएँ

गहन आत्मीयता की उष्मा प्रज्ज्वलित

तुम्हारा स्वर्णिम सुगंधित साथ

काल्पनिक शून्य में भी हो मानो

तुम यहीं-कहीं आस-पास ...

सम्मोहित

शनै:-शनै: सहला देती हूँ तुम्हारा हाथ

संकुलित कटे-छंटे शब्द हमारे

मन्द्र मौन में रीत जाते

और कुछ और तैरते, स्वछन्द

बस घूमते आस-पास

सैलानी बुलबुलों की तरह

उड़े, उड़े जा रहे

हमारे निज से भी बड़े

आकाशीय, निसीम अखण्ड निजि शून्य में

असीम सियाह गुहाओं में तुम्हारी

जानती हूँ,  है कहीं उर-विदारक शोर

इस पर भी निज कष्टों के कण्ठ मरोड़

बारिश के बाद बटोर लाते हो हर बार

सातों इन्द्रधनुषी रंगों की आभाएँ

नि:संदेह रंग-रंग देते हो रोम-रोम तुम मेरा

स्नेह-दृष्टि और अनुकंपा से प्रिय तुम कैसे

मेरी चेतना की आँखों को  जगमगा देते हो

और जब नहीं होते हो पास मेरे

मैं अपनी अनुभवात्मक

आंतरिक मुडेरों के प्रसारों पर

दीप-पर्व या कोई त्योहार चाहे हो न हो

छलकती कृतज्ञता के पावन दीप जलाती

मैं आत्मा के फूलों से आत्मा की तुम्हारी

श्रध्दानत, आरती उतारते नहीं थकती

हो जाती हूँ तुम्हारे "पूर्ण" से मैं "सम्पूर्ण"

मेरे माथे पर तुम्हारे स्नेह का टीका लगाए

हर सन्ध्याकाल आरती-आलाप-वेला में

एक आस लिए खड़ी रहती हूँ प्रतीक्षार्थ 

महामहिम मधुर एकान्त में मैं

सुनने  तुम्हारी ध्वनिगुंजित पदचाप

भीतर सारे दरवाज़े खुल-खुल जाते हैं अकस्मात

रमणीयतम भावनाओं के गुन्थन में

बाहें फैलाए, तुम्हारे मुग्ध आलिंगन के लिए

                   --------

--- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 17, 2017 at 11:29am

//प्रेम और जज़्बात में डूबी सुंदर रचना//

मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय तस्दीक जी।

Comment by vijay nikore on August 17, 2017 at 11:26am

//बेहतरीन भावों की चंपा , चमेली , रातरानी , गुलाब और मोगरा महक रहा है//

आपसे मिले इन फूलों की सुगन्ध मेरे साथ है और यह मुझको और अच्छा लिखनी की प्रेरणा देती रहेगी।

आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by vijay nikore on August 9, 2017 at 1:58pm

//हृदय के हिम शिखर से अंतर्मन की निर्मल  गंगा शाश्वत प्रेम की वादियों को छूती यूँ बही कि मेरा पथिक मन अपने प्रेम पंथ को संवारने लगा। भाव प्रतिमा का ऐसा शब्द शृंगार कि मूक अभिव्यक्ति स्मृति धरा पर नृत्य करने को विवश हो जाए। सृष्टि के रोम रोम में व्याप्त आदि को अंत तक जीने के भाव को जीवंत करती इस कल कल करती अमर काव्य सरिता की प्रस्तुति//

वाह, आदरणीय सुशील जी, आपकी प्रतिक्रिया के काव्य-भाव ! आपने तो एक और सुन्दर कविता ही लिख दी। 

इस उदार सराहना के लिए हृदयतल से आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on August 8, 2017 at 2:31pm

//मैं  अभिभूत हो जाता हूँ जब स्वकीया  और परकीया  के प्रति आपके गीतों में  एक सी निष्ठा देखता हूँ //

आपने इस रचना को केवल पढ़ा ही नहीं, इसके मर्म को जिस प्रकार पास से अनुभव किया है, यही मेरे लेखन की प्रेरणा है।

हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on August 8, 2017 at 2:26pm

//वाहह! भाव,कथ्य,शिल्प,हर दृष्टि से लाजवाब रचना।//

रचना की सराहाना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गजेन्द्र जी।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2017 at 4:05pm
मुहतरम जनाब विजय साहिब ,प्रेम और जज़्बात में डूबी सुंदर रचना के लिए मुबारकबाद क़बूल फरमाएं
Comment by Mohammed Arif on August 5, 2017 at 11:14pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब, बेहतरीन भावों की चंपा , चमेली , रातरानी , गुलाब और मोगरा महक रहा है । हार्दिक बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर ।
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 8:30pm

आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम  ... हृदय के हिम शिखर से अंतर्मन की निर्मल  गंगा शाश्वत प्रेम की वादियों को छूती यूँ बही कि मेरा पथिक मन अपने प्रेम पंथ को संवारने लगा। भाव प्रतिमा का ऐसा शब्द शृंगार कि मूक अभिव्यक्ति स्मृति धरा पर नृत्य करने को विवश हो जाए। सृष्टि के रोम रोम में व्याप्त आदि को अंत तक जीने के भाव को जीवंत करती इस कल कल करती अमर काव्य सरिता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और आपको आपकी ये ४५वीं वैवाहिक वर्षगाँठ मुबारक हो। जीवन संगिनी के लिए आपकी ये प्रेम सरिता यूँ ही बहती रहे। हार्दिक बधाई सर। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2017 at 6:11pm

आदरणीय निकोर  जी , आपका सदेश मिला . मैं जरूर अन्य  व्यस्त्तताओं  के कारण ओ बी ओ पर अधिक सक्रिय नहीं रह पाता . इसका अफ़सोस मुझे भी है . पैतालीस वर्ष के बाद चाहत के ऐसी अनुपम  जिजीविषा जो आपके गीत में अभिव्यक्त हुयी वह  आपके निर्मल ह्रदय की सच्ची ऊर्जा है . मैं  अभिभूत हो जाता हूँ जब स्वकीया  और परकीया  के प्रति आपके गीतों में  एक सी निष्ठा देखता हूँ . आपको नमन आपकी भावधारा को नमन और आपकी लेखनी को नमन  . सादर मेरे  अग्रज निकोर जी  

Comment by vijay nikore on August 5, 2017 at 4:39pm

वाह्ह्ह इतनी भावपूर्ण रचना जिसकी रवानी में एक पाठक का मन बह जाए वैसा ही प्रभाव मेरे हृदय में हुआ इसको पढ़कर //

आपने इतना मान दे कर मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है, आदरणीया बहन राजेश जी... हृदयतल से आपका आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service