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हम पत्थर को अपना बैठे (छोटी बह्र पर ग़ज़ल 'राज')

२ २ २ २  २ २ २ २

हम अपनों को बिसरा बैठे

गम पास हमारे आ बैठे

 

 जलने की तमन्ना थी दिल में

सूरज को हाथ लगा बैठे

 

तुम शाद रहो आबाद रहो

हम तो दिल को फुसला बैठे

 

जब दुनिया में इंसा न मिला

हम पत्थर को अपना बैठे

 

कश्ती ने  हाथ बढ़ाया जब

 हम दूर किनारे  जा बैठे

 

कैसा शिकवा कैसा गुस्सा

किस्मत से हाथ मिला बैठे

 

गिर्दाब बनाया  हमने जो                                                                                                                                              उसमे खुद नाव डुबा  बैठे 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 14, 2017 at 12:39pm

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा , आपके मिसरों की बह्र मेरे हिसाब से यह है
हम अपनों को बिसरा बैठे ------बह्र हिन्दी ,मुतक़ारिब असरम मक़बूज़ महज़ूफ (फेलुन ,फेलुन,फेलुन,फेलुन)
गम पास हमारे आ बैठे -------------
मिलने की तमन्ना दिल में थी -------बह्र ज़मज़मा ,मुतदारिक मर्बाअ मुज़ायफ (फेलुन ,फइलुन ,फेलुन,फेलुन )
आपकी ग़ज़लमें यह दो बह्र हैं , लय के हिसाब से आप खुद देख लीजिए ,लगा ,मिला और डुबा क़ाफ़िया दूसरी
बह्र में तो आएगा मगर पहली बह्र में नहीं आएगा \ आपके मत्ले के दोनो मिसरों की बह्र अलग अलग है,
मेरे ख़याल से आप समझ गई होंगी ---सादर


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Comment by rajesh kumari on June 14, 2017 at 9:17am

मुह्तरम  तस्दीक जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया |आपने शेर दर शेर अपने हिसाब से विश्लेषण किया है उसकी शुक्रगुजार हूँ .

पहले तो ये बह्र --मुतदारिक मुसम्मिन मखबून मकतूअ ---ही बहुत कन्फयूजिंग है इसमें मिली छूट के विषय  में भी  अलग अलग राय हैं कोई १२१ से भी शुरू करता है जिसको मैंने कभी नहीं लिया २११ या १२२ करने की भी छूट  है  एसा बहुत जगह पढ़ा है ऐसी गज़लें लय प्रधान होनी जरूरी हैं अब देखिये आपने जो इस्स्लाह दी है -हम अपनों को बिसरा बैठे 
गम पास हमारे आ बैठे  को आपने कहा ----              पास हमारे गम आ बैठे ----इसमें लय आ ही नहीं रही है  इसी तरह अन्य मिसरे भी  हैं ---जलने की तमन्ना थी दिल में ------जलने की थी दिल में तमन्ना इसमें भी लय नहीं बनती 

अब एक बड़े शायर का उदाहरण इसी बह्र पर कोट करूंगी उसे देखिये ---फिर से शिल्प नया घड़ने को ,हाथ नया पत्थर माँगेगा

दूसरे मिला और लगा काफिया क्यूँ नहीं हो सकते इस पर भी संशय है आप थोड़ा समझाइये .

मैंने इस ग़ज़ल को लय  के हिसाब से बांधा है  आप ग़ज़ल को मुझसे बेहतर जानते हैं हो सकता आपकी बातें ठीक हों किन्तु उस हिसाब से लय ही नहीं आ पा रही है .यदि ग़ज़ल पर ये प्रस्तुति खरी नहीं उतरती तो इसे नज्म ही रहने दूँगी 


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Comment by rajesh kumari on June 14, 2017 at 9:00am

आद० मुहम्मद आरिफ जी ,आपको ये ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया .

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 13, 2017 at 9:11pm

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा, छोटी बह्र में अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
लगता है ग़ज़ल में ज़्यादा वक़्त नहीं दे सकीं हैं ,कई मिसरे बह्र में नहीं ,देख लीजिएगा

हम अपनों को बिसरा बैठे
गम पास हमारे आ बैठे -----पास हमारे गम आ बैठे
जलने की तमन्ना थी दिल में ------जलने की थी दिल में तमन्ना
सूरज को हाथ लगा बैठे -----पास शम्श के हम जा बैठे (लगा क़ाफ़िया नहीं होगा )
तुम शाद रहो आबाद रहो -----शाद रहो आबाद रहो तुम
जब दुनिया में इन्सा न मिला ----जब दुनिया में मिला न इन्सा
कश्ती ने हाथ बढ़ाया जब --------जब कश्ती ने हाथ बढ़ाया
हम दूर किनारे जा बैठे -------दूर किनारे हम जा बैठे
क़िस्मत से हाथ मिला बैठे -----क़िस्मत को हम अपना बैठे (मिला क़ाफ़िया नहीं होगा )
गिर्दाब बनाया हम ने जो ------जो गिर्दाब बनाया हम ने
उसमें खुद नाव डूबा बैठे -----नाव वहीं पर हम ला बैठे (डूबा क़ाफ़िया नहीं होगा )
सादर

Comment by Mohammed Arif on June 13, 2017 at 6:45pm
आदरणीया राजेश कुमारी आदाब,नन्ही बह्र वाली प्यारी-सी ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी रामबली गुप्ता जी बता चुके हैं ।

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Comment by rajesh kumari on June 13, 2017 at 5:56pm

आद० बसंत कुमार जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 13, 2017 at 5:56pm

आद०  रामबली जी ,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी इस लिए भी शुक्रिया गलती पर ध्यान दिलाया उसका भी शुक्रिया दरअसल दो जगह ये ग़ज़ल थी जो ड्राफ्ट था वो गलती से पोस्ट हो गई जो फाइनल थी जो अन्य जगह पोस्ट की वो सही वाली थी इसे अभी संशोधित करती हूँ 

गम पास हमारे आ बैठे ही था मूल पोस्ट  में तथा जलने की तमन्ना थी दिल में ,सूरज को हाथ लगा बैठे मिसरा इस तरह था |

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 4:20pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , वाह वाह 

Comment by रामबली गुप्ता on June 13, 2017 at 4:03pm
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया बहन राजेश कुमारी जी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
कुछ जगहों पर मुझे लय उतनी बनती हुई नही लगी हालांकि शिल्प से सही है।
जैसे मतले को लें तो सानी में
'पास हमारे गम आ बैठे'
के स्थान पर
'गम पास हमारे आ बैठे'
रखने पर बेहतर लय बन रही है।
इसी प्रकार पहले शैर को यूँ कहने पर बेहतर लय हो रही है-
थी दिल में हसरत जलने की,
सूरज को हाथ लगा बैठे।
चौथा और अंतिम शैर मुझे प्रवाह के दृष्टिकोण से सबसे अच्छे लगे।पुनश्च बधाई। इस प्रकार के वह्र में प्रवाह ही महत्वपूर्ण होता है।सादर

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