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ग़ज़ल नूर की - ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२

अँधेरों!! “नूर” ने जुगनू अभी उछाला है,
ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है.
.
बिदा करेंगे तो हम ज़ार ज़ार रोयेंगे,
तुम्हारे दर्द को अपना बना के पाला है. 
.
नज़र भी हाय उन्हीं से लड़ी है महफ़िल में,
कि जिन के नाम का मेरे लबों पे ताला है.  
.
शजर घनेरे हैं तख़लीक़ में मुसव्विर की
सफ़र की धूप ने उस पर असर ये डाला है.  
.
निकल के कूचा-ए-जनां से आबरू न गयी,
लुटे हैं सुन के हमें दिल से भी निकाला है. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 925

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 9:20pm

शुक्रिया आ. बृजेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 9:19pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ अहमद साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 9:19pm

शुक्रिया आ. राम अवध जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 1, 2017 at 8:21pm
अँधेरों!! “नूर” ने जुगनू अभी उछाला है,
ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला...वाह वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2017 at 8:01pm
मुहतरम जनाब नीलेश साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ---आखरी शेर के उला मिसरे में टाइप गलती है ,
कूचा-ए-जानां--कूचा-ए-जनां
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 1, 2017 at 6:10pm
वाह क्या कहने
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 5:44pm

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 5:43pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 1:42pm
वाह!वाह!!वाह!!! हर शे'र लाजवाब, बेजोड़ ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 11:57am

आद्ररनीय नीलेश भाई , खूबसूरत गज़ल के हार्दिक बधाइयाँ ।

दूसरे शेर का जवाब नहीं ... खूब साही बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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