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१. 

निद्राधीन निस्तब्धता

कुलबुलाता शून्य

सनसनाता पवन

डरता है मन

अर्धरात्रि में क्यूँ

कोई खटखटाता है द्वार

प्रलय, सोने दो आज

        ------

२.

मेरी ही गढ़ी तुम्हारी आकृति

बारिश की बूँदें

तुम्हारे आँसू

तुम्हारी खिलखिलाती हँसी

कल्पना ही तो हैं सब

वरना 

मुद्दतें हो गई हैं तुमसे मिले

          -----

३.

कभी अपना, कभी

अपनी छाया का भी 

वियोग

दर्द किसका

किसने किसको दिया

किसने ज़्यादा सहा

किसने ज़्यादा दिया

         ------

४.

रह गया है बस

सुनसान के संग

अजाना सुनसान

परिचित में  भी मानो

हैं सब अपरिचित

अवशेष है

परिचित उच्छवास

         ----

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 9:39am
आदरणीय विजय निकोरे सर,अद्भुत क्षणिकाएँ हुई हैं।हार्दिक बधाई स्वीकारें!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2017 at 11:42am
बेहतरीन सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by vijay nikore on May 5, 2017 at 2:26am

आदरणीय आरिफ़ भाई, 

आपके अच्छे सुझाव पर मैंने और सोचा, और अन्य कवियों की क्षणिंकाएँ भी पढ़ीं। 

मुझको व्यंग और बिना व्यंग .. दोनों प्रकार की क्षणिकाएँ मिलीं। अत: आपका कहना

भी सही है। अधिक जानकारी के लिए मैंने एक मित्र जो हिन्दी में पी एच डी करने के बाद हिन्दी/संस्कृत की प्रोफ़ेसर रहीं हैं,

उनसे क्षणिका की परिभाषा पूछी, तो आज उनका उत्तर निम्न आया...

//क्षणिका ... 

किसी महत्वपूर्ण  क्षण को आत्मसात करके, गहरे अर्थ में रची गई  लघुकाय मर्मस्पर्शी  और मर्मभेदी रचना   ही  क्षणिका है !  इसमें कवि-मन में तीव्रता से उठ रही,  किसी क्षण  की  अनुभूति की गहनता  होती है !//
उन्होंने प्रिय अज्ञय जी की क्षणिकाएँ पढ़ने के लिए संकेत दिया।
बहुत अच्छा लगता है जब ओ बी ओ पर इस प्रकार की healthy discussions होती हैं, और "कुछ और नया" सीखने को मिलता है। इसी लिए मैं  लगभग ४ वर्ष से ओ बी ओ से जुड़ा हूँ। आशा है आप सुझाव देते रहेंगे, आदरणीय आरिफ़ भाई।
सादर, शुभकामनाओं सहित।
विजय निकोर
Comment by Sushil Sarna on May 4, 2017 at 5:02pm

आदरणीय विजय निकोर जी निःशब्द हूँ ऐसी अनुपम ,अद्भुत और अप्रतिम क्षणिकाओं को पढ़कर।  भावों की गहनता, प्रवाह में माधुर्य और शब्द चयन सब बेमिसाल  ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर। 

Comment by vijay nikore on May 4, 2017 at 3:40pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिहं जी।

Comment by vijay nikore on May 4, 2017 at 3:36pm

//कम शब्दों में गहन अर्थ समेटे, " परिचित में भी अपरिचित ..." तथा " किसने ज्यादा सहा, किसने ज्यादा दिया//

भाव को इस प्रकार अनुभव करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया अर्पणा जी।

Comment by vijay nikore on May 4, 2017 at 3:32pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आशुतोेष जी ।

Comment by vijay nikore on May 1, 2017 at 8:57am

आपका हार्दिक आभार,आदरणीय  शिज्जु जी।

Comment by narendrasinh chauhan on April 27, 2017 at 5:27pm

खूब सुन्दर रचनाऐ। ...

Comment by vijay nikore on April 27, 2017 at 6:54am

सुझाव के लिए आपका आभार... यही तो खूबी है ओ बी ओ की।

आपसे सराहना मिली, उसके लिए भी हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय आरिफ़ भाई।

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