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कई पेड़ों की तरह वह भी एक पेड़ था
शब्दों के खांचों से दूर.............

छुटपन में कभी कोई गुठली फेंक दिया था
प्रकृति ने अपना काम शुरू किया था

समय गुज़रा लाल कोंपल था दिखा
ख़ुशी हुई बच्चे ने बच्चे को देखा

एक पेड़ जो मुझे जन्म से देख रहा था
एक पेड़ जिसको जन्म से मैं देख रहा था

एक अनजान दरख़्त
एक थोड़ा जाना पहचाना ........

मेरे दुआर का पेड़ मेरी ऊँचाई लाँघ गया
ख़ुशी ख़ुशी मैं उसके कंधों पर भाग गया

बहुत से जीव मेरे साथ वहाँ थे आते
हँसते कूदते..कभी मुझे काट जाते

परन्तु मुझे जन्म से जो पेड़ देख रहा था
वह खांचों में आ गया था

उसे भी सभी द्वारा
आम का पेड़ कहा गया था.....

समय ने करवट ली वह मेरे रूबरू हुआ
वह तो खुश था उससे ज्यादा मैं हुआ

समय न होते हुए भी कुछ तो था...

हवाएं गर्म होते हुए भी मखमली थीं
ख्यालों में अब नरमी थी

जाने क्या थी वह अनुभूति....
कौन थी बात सच्ची कौन थी झूठी

अनजान ऊर्जा प्राप्त होती रही
काल की धारा बहती रही

एक दौर रीता .....
एक दौर बीता ...

जीवन ने रंग बदला बरसात आ गई
नए पत्तों से हरियाली छा गयी

फिर से समय स्याह हुआ...

दरख्त सब देख चुका था
अपनी सांसें रोक चुका था

बहुत मीठे आम थे उसके...

हम फल के लिए ही भागते हैं
ढोल पीटकर ही कुछ त्यागते हैं

आज उसकी सूखी देह है मेरे सामने
इस मोड़ पर नहीं जाता है उसे कोई थामने....

मेरे दुआर का पेड़ मेरे ऊपर हँसता है
कहता है...

अगर हम भी फल साधने लगें
तो ये फल हमें बाँधने लगे

तू क्यों उदास होता है
क्यों विचारों का दास होता है

यही तो जीवन है...
किसी का जन्म
किसी का मरण है

कोई पास आता है
कोई भाग जाता है

कोई पटरी पर चलता है
.........कोई सत्य टटोलता है

यह कह कर वह...

मुझे गले लगा लेता है
हर पल हर हालात में खुश रहता है..........


-------मौलिक और अप्रकाशित---------

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Comment

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Comment by ASHUTOSH JHA on April 13, 2017 at 10:32pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी।आपका बहुत बहुत आभार।
Comment by Mahendra Kumar on April 13, 2017 at 7:54pm
बढ़िया कविता है आदरणीय आशुतोष जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by ASHUTOSH JHA on April 13, 2017 at 2:42pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,नमस्कार।
आपकी बधाइयों के लिए हार्दिक आभार ।
Comment by ASHUTOSH JHA on April 13, 2017 at 2:37pm
आदरणीय समर कबीर जी,नमस्कार।आपके द्वारा की गई हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by ASHUTOSH JHA on April 13, 2017 at 2:33pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी,नमस्कार।आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2017 at 8:58pm

आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी कविता रची है आपने .... बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on April 10, 2017 at 6:13pm
जनाब आशुतोष झा साहिब आदाब,बहुत सुंदर वैचारिक कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on April 10, 2017 at 12:49pm
आदरणीय आशुतोष झा जी आदाब,बेहतरीन पर्यावरणीय रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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