For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने दिल की कहाँ सुनता हूँ

मैं अपनी कमीज़ गंदी करके पहनता हूँ।
मैं आज भी चाय ठंडी करके पीता हूँ।

सुबह की धूप से मेरी मौसिकी नहीं आज भी।
रात की यारी मैं आज भी पक्की करके जीता हूँ।

न सताया करो देखकर यूँ कभी-कभी।
मैं आज भी ज़ेहन में तुमसे कत्ल होकर मिलता हूँ।

खुश है कि नहीं कोई परिंदा दिल का।
कैसे हो पता मैं आज भी अपने दिल की कहाँ सुनता हूँ।


-------------------------------------------

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ASHUTOSH JHA on April 9, 2017 at 4:18pm
आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2017 at 6:11pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना के भावों और विचारों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ....  बाक़ी बातों के लिये मै आदरनीय समर भाई जी  से सहमत हूँ ..।

Comment by ASHUTOSH JHA on April 3, 2017 at 5:35pm
आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी। मैं ज़रूर प्रयास करूंगा।
हार्दिक आभार।
Comment by Samar kabeer on April 3, 2017 at 10:33am
आपकी रचना का रूप ग़ज़ल जैसा ज़रूर है लेकिन उसके मानकों पर पूरा नहीं उतरता,इसलिये आपसे निवेदन है कि अगर आप ग़ज़ल सीखना चाहते हैं तो ओबीओ पर ग़ज़ल की कक्षा का लाभ उठायें ।
Comment by ASHUTOSH JHA on April 3, 2017 at 12:46am
आदरणीय समर कबीर जी।नमस्कार।

मेरे हृदय से जो छलका उसे मैंने कलमबद्ध कर आप सभी के सामने प्रस्तुत किया।

यह क्या है इसके विषय में आप जैसे विद्वान और जानकार लोग ही बता सकते हैं।

सादर आभार।
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 6:06pm
जनाब आशुतोष झा साहिब आदाब,ये क्या ग़ज़ल है, या कुछ और ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
21 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service