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ग़ज़ल -जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें - ( गिरिराज )

2122    2122    212

धारणायें हों मुखर, तो चुप  रहें

सच न पाये जब डगर, तो चुप  रहें

  

शब्द ज़िद्दी और अड़ियल जब लगें

और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप  रहें

 

जब धरा भी दूर हो आकाश भी

आप लटके हों अधर, तो चुप  रहें

 

कृष्ण हो जाये किशन, स्वीकार हो

शह्र पर जब हो समर तो चुप रहें

 

सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें

जब ग़लत हो नामवर, तो चुप  रहें

 

तेल औ’र पानी मिलाने के लिये

कोशिशें देखें  अगर, तो चुप  रहें

******************************

( आ. पाठकों से एवँ आ. समर कबीर जी से अनुरोध है - चौथे शेर मे आये शब्द - समर = युद्ध लें )
मौलिक एवॅँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 11:02am

आ. मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 9, 2017 at 10:42am

बेहतरीन गज़ल आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 9, 2017 at 10:16am

आ० अनुज . आपने क्या जल्दबाजी में यह गजल डाल दी . देखिये –

और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप  रहें------------2122   2112  2  212

आप लटके हों अधर, तो चुप  रहें-------लटके हों अधर -----?     हों अगर लटके अधर पर चुप रहे

शह्र पर जब हो समर चुप रहें   ------------2122   2122  -12---?-----‘तो’ शब्द छूट गया .

 सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें

जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें--------------बेहतरीन , मुबारकवाद

तेल औ’र पानी मिलाने के लिये-------- तेल औ पानी मिलाने के लिये--------

सादर,

Comment by Mohammed Arif on April 9, 2017 at 9:24am
आदरणीय गिरिराज जी आदाब, बेहतरीन और लाजवाब ग़ज़ल । आज सूबह से ओबीओ मंच पर दो बेहतरीन ग़ज़लें आली जनाब समर कबीर साहब और आपकी ग़ज़ल से साक्षात हुआ । आज का रविवार सार्थक हो गया । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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