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आसमा कब से पड़ा वीरान है

2122 2122 212
बेसबब लिखता कहाँ उन्वान है ।
वो नई फ़ितरत से कब अनजान है ।।

कुछ मुहब्बत का तजुर्बा है उसे ।
मत रहो धोखे में वो नादान है ।।

सिर्फ माँगा था अदा की इक नज़र।
कह गई वह जान तक कुर्बान है ।।

दायरों से दूर जाना मत कभी ।
ताक में बैठा कोई अरमान है ।।

है भरोसा ही नहीं खुद पर जिसे ।
ढूढ़ता फिरता वही परवान है ।।

कहकशां में ढूँढिये अब चाँद को।
आसमा कब से पड़ा वीरान है ।।

इश्क़ की गलती करेगा आदमी ।
मत कहो कुछ भी उसे इंसान है ।।

क्यों लड़ाई बाद मरने के यहां ।
चार दिन का आदमी मेहमान है ।।

छूट जाते हैं दरो दीवार जब।
उसकी ख़्वाहिश से खुदा हैरान है ।।

हुस्न ढल जाएगा तेरा भी सनम ।
फख्र मिट्टी पे न कर बेजान है ।।

दूर रहिये नाज़नीनो से बहुत ।
ढूढ़ता रहता इन्हें शैतान है ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on February 26, 2017 at 9:37am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, शानदार ग़ज़ल । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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