For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत- आया जाड़ा हाड़ कँपाने

अँगड़ाई ले रही प्रात है,

कुहरे की चादर को ताने।
ओढ़ रजाई पड़े रहो सब,
आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

तपन धरा की शान्त हो गयी,
धूप न जाने कहाँ खो गयी।
जिन रवि किरणों से डरते थे,
लपट देख आहें भरते थे।
भरी दुपहरी तन जलता था,
बड़ी मिन्नतों दिन ढलता था।
लेकिन देखो बदली ऋतु तो,
आज वही रवि लगा सुहाने।
आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

गमझा भूले मफ़लर लाये,
हाथों में दस्ताने आये।
स्वेटर टोपी जूता मोजा,
हर आँखों ने इनको खोजा।
सैंडिल रख दी अब बक्से में,
हाफ शर्ट भी सब बक्से में।
अलमारी में टँगे हुए वो,
बाहर निकले कोट पुराने।
आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

लइया पट्टी मूँगफली हो,
ताजे गुड़ की एक डली हो।
गजक बताशे तिल के लड्डू,
भूल गए सब लौकी कद्दू।
मटर टमाटर गोभी गाजर,
स्वाद भरें थाली में आकर।
कड़क चाय औ गरम पकौड़ी,
जाड़े के हैं यार सयाने।
ओढ़ रजाई पड़े रहो सब,
आया जाड़ा हाड़ कँपाने।।

✍डॉ पवन मिश्र

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 27, 2017 at 1:42pm

आद गिरिराज जी। आपकी टिप्पणी से नव ऊर्जा का संचार होता है। लिखना सार्थक सा लगने लगता है। हार्दिक आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 27, 2017 at 1:40pm

आद डॉ आशुतोष जी। आपकी टिप्पणियों के लिये हार्दिक आभार। लेखन की कक्षा का मैं भी एक नव शिक्षार्थी हूँ इसलिये आपके प्रश्न का यथोचित उत्तर नहीं है मेरे पास। शायद गीत वह विधा है, जिसमे मुखड़े और अन्तरे के चरण निश्चित होते हैं और नवगीत में पंक्तियों की बाध्यता नही होती है, दो पंक्तियों का मुखड़ा भी हो सकता है और दस का अंतरा भी,,,,शेष सुधीजन के हवाले

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 27, 2017 at 1:36pm

आद मिथिलेश जी, इस उत्साहवर्धन के लिये हृदयतल से आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 8:18pm

आदरणीय पवन भाई , बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 5:19pm

आदरणीय पवन जी ..जाड़े का मंजर आँखों के सामने हू बहू उतारते इस शानदार नव गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें...इस आदरणीय मंच पर सीखने सिखाने के अद्भुत तरीके के बाद भी मैं आज तक गीत और नवगीत के प्रसंग पर थोडा उलझ जाता हूँ ..कृपया इस उलझन का निवारण करने का कष्ट करें .. मेरे निवेदन को अन्यथा मत लीजियेगा ...रचना पर ढेर सारी बधाई के साथ सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 12:46am

आदरणीय पवन जी, जाड़े पर बढ़िया गीत लिखा है. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 24, 2017 at 9:19pm

आद. समर साहब। आपकी टिप्पणी सदैव ही उत्साह बढ़ाती है। आपका मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन सदैव मिलता रहे, यही कामना है। हार्दिक आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 24, 2017 at 9:17pm

आद सुरेन्द्र नाथ जी। आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी का हृदय से आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 24, 2017 at 9:16pm

आद. प्रतिभा पाण्डेय जी। पंक्तियों के भाव आप तक पहुंच गए। लिखना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार

Comment by Samar kabeer on January 24, 2017 at 2:40pm
जनाब डॉ.पवन मिश्र जी आदाब,जाड़े के मौसम को लेकर अच्छा नवगीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service