For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यादों का सफर ...

मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां पर आज
खिजाओं के डेरे थे


मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
उजालों में अंधेरे थे


मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
सिर्फ
यादों के घेरे थे


मैं
रुक गया
चलते चलते
जहां मंज़िल ने
मुँह मोड़ा था


मैं
हंस पड़ा
उस खार की अदा पर
जिसके दर्द में
यादों के डेरे थे


मैं
बे-आवाज़
वक्त के निशानों को
शज़र के तनों पर
धीरे धीरे
ग़ुम होते
दिल के बने
निशान पर लिखे
आई लव यू
को देखता रहा


मैं
रुक गया
वहीं पर
ले लिया
उसी शजर का सहारा
जहां मेरे ख़्वाब
मुझे आज भी अपने स्पर्शों से
ज़िंदा रखते हैं


मैं
चलते चलते
थक गया हूँ
खो जाना चाहता हूँ
रास्तों की गर्द में
खो जाना चाहता हूँ
सफर के अधूरे
निशानों में
अब दिल
अपने सफ़र का
मुक़ाम चाहता है
वो
उसकी यादों के
ज़िंदाँ में ही
अब
ज़िंदा रहना चाहता हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 2:27pm

आदरणीय समर कबीर साहिब ये आपका बड़प्पन है जो आप इस नाचीज़ के सृजन को इतना मान देते हैं। थैंक्स

Comment by Samar kabeer on December 14, 2016 at 2:18pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।
Comment by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 1:46pm

आदरणीय  Mahendra Kumar जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय स्नेह देने का हार्दिक आभार। आ. समर साहिब की बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ और तदनुसार उसे मैंने संशोधित पर कर दिया है। आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 1:46pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति को अपने स्नेहिल शब्दों से शोभित करने का दिल से आभार। आपका मार्गदर्शन मेरे लिए बहुत मायने रखता है। आपकी सूक्षम समीक्षा में इंगित बिंदु की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित करने का तहे दिल से शुक्रिया। मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ और तदनुसार मैंने प्रस्तुति में संशोधन भी कर दिया है जो पटल पर पुनः प्रस्तुत हो गयी है। अपना मार्गदर्शन ऐसे ही बनाये रखें। सादर .....



Comment by Mahendra Kumar on December 14, 2016 at 9:58am
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने। हार्दिक बधाई। आदरणीय समर सर की बात से मैं भी सहमत हूँ। 'यादों के सफर, एक अच्छा विकल्प है। शेष आप पर। सादर।
Comment by Samar kabeer on December 13, 2016 at 8:36pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
सबसे पहली बात तो ये कि'ज़िनदान'शब्द पुल्लिंग है इसलिये 'यादों की जिन्दां'को "यादों के जिन्दां"करना उचित होगा,दूसरी बात ये की चलता रहा,यानी आप जिन्दां में चलते रहे,जबकि किसी भी क़ैद खाने का दायरा सिमित होता है,इस लिहाज़ से इसे आप यादों के जिन्दां की बजाय ",यादों का सफ़र"कहेंगे तो ज़ियादा मुनासिब होगा,आपका क्या ख़याल है ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service