For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं // --सौरभ

१२२२  १२२२ १२२

इन आँखों में जो सपने रह गये हैं
बहुत ज़िद्दी, मगर ग़मख़ोर-से हैं

अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं

अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं

प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं

उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं

उमस बेसाख़्ता हो, बंद कमरे-
कई लोगों को फिर भी जँच रहे हैं

करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं

 

सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !

नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर 

बया की चोंच में तिनके दिखे हैं
*****************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:33pm

आदरणीय समर साहब, ग़र्दख़ोर भोजपुरी भाषा में खूब चलने वाला शब्द है. वस्तुतः गर्दख़ोर ऐसे कपड़े के लिए इस्तमाल किया जाता है जो धूल-ग़र्द पड़ने के बावज़ूद एकदम से बुरी हालत में नहीं दिखता. इसी तर्ज़ पर ग़मख़ोर कर लिया.
आपको प्रयास रुचा, यह मेरे लिए भी संतोष की बात है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:32pm

आदरणीय विजय शंकर जी, आपने इस ग़ज़ल के शेरों को जो इज़्ज़त बख़्शी है, वह अभिभूत कर रही है.
सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:32pm

हार्दिक धन्यवाद, भाई रामबली जी. सहयोग बनाये रखें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:32pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सदाशयता से अभिभूत हूँ. सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:32pm

मेरा कोई प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे लिए पारितोषिक है, आदरणीय
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:31pm

आदरणीय, हार्दिक अभिनन्दन


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:31pm

आदरणीय, हार्दिक धन्यवाद. आप वाकई संलग्न पाठक हैं.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 10:31pm

आदरणीय गिरिराज भाई, हौसका अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद. ऐसी वाहवाही से आगे भी सहजता बनी रहती है.
सादर

Comment by Samar kabeer on October 20, 2016 at 9:26pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है,दाद ही दाद हाज़िर है, और साथ ही ढेरों मुबारकबाद भी क़ुबूल फरमाएं ।
मतले में 'ग़मख़ोर'की तरकीब अच्छी और नई लगी यानी ग़म खाने वाला,बहुत ख़ूब वाह ।
सातवां शैर भी बहुत उम्दा हुआ है,में इसे इस तरह पढ़ कर दोहरा आनन्द ले रहा हूँ :-
"सुनेगा कौन मन की बात अम्मा
सभी टीवी मुबाइल में लगे है"
इस बहतरीन प्रस्तुति पर,पुनः बधाई आपको ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 20, 2016 at 7:38pm
प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं
उमस बेसाख़्ता हो, बंद कमरे-
कई लोगों को फिर भी जँच रहे हैं
सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !
बहुत खूब , पर सिर्फ तारीफ़ से कुछ नहीं होगा , लोग पढ़ें और याद करें। बात को आगे बढ़ायें।
बधाई , आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
16 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service