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ग़ज़ल - मेरी ग़ज़ल पे निशाना है बात क्या करना

1212 1122 1212 22

बड़ा खराब ज़माना है बात क्या करना ।
मेरी ग़ज़ल पे निशाना है बात क्या करना ।।

नहीं है नज्म की तहजीब जिस मुसाफिर को ।
उसी से दिल का फ़साना है बात क्या करना ।।

अजीब शख़्स यूँ पढ़ता उन्हीं निगाहों को ।
किसी को वक्त गवाना है बात क्या करना ।।

बिखर गए है तरन्नुम के हर्फ़ महफ़िल में ।
नजर नज़र से मिलाना है बात क्या करना ।।

हुजूर जिन से दुपट्टे कभी नही सँभले ।
उसे भी घर को बसाना है बात क्या करना ।।

दिखी है आग जो दरिया में तेज लपटों सी ।
वहीं से डूब के आना है बात क्या करना ।।

नया नया है वो शायर उसे न छेड़ो तुम ।
हजार दर्द सुनाना है बात क्या करना ।।

घनी है जुल्फ बहकती सी शोख़ नजरें हैं ।
मियाँ नकाब उठाना है बात क्या करना ।।

गुजर न रोज़ अदाओ के साथ बन ठन कर ।
तुझे तो आग लगाना है बात क्या करना ।।

ये हाशिये जो मुकद्दर के दरमियां मेरे ।
फ़ना का फर्ज निभाना है बात क्या करना ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on September 26, 2016 at 11:17am
आ0 डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर विशेष आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 26, 2016 at 11:16am
आ0 बासुदेव अग्रवाल साहब सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 26, 2016 at 11:16am
आ0 आशीष सिंह ठाकुर अकेला जी सादर नमन के साथ आभार ।
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 26, 2016 at 9:49am

हर एक शेर शानदार है आ. श्री नवीन मणि त्रिपाठी जी !!!

नायाब ग़ज़ल आपने पेश किया है......वाह!!!!

सादर!!!!

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 25, 2016 at 7:26pm
वाह जी वाह एक एक शेर दाद देने के लायक है। बहुत खूब।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2016 at 7:04pm

सुभान अल्लाह -------------बहुत सुन्दर . मुझे बहुत पसंद आयी .

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