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डेढ़ साल हो चुका था नकुल को गये आज भी उस घर की दीवारों चौखटों से सिसकियों  की आवाज सुनाई देती है बगीचे के हरे सफ़ेद लाल फूल उस तिरंगे झंडे की याद दिलाते हैं जिसमें लिपटा हुआ उस घर का चिराग कुछ वक़्त के लिए रुका था | नई नई दुल्हन की कुछ चूड़ियाँ आज भी उस तुलसी के पौधे ने पहन रक्खी हैं | घर में से बीमार माँ की खाँसी की आवाजें कराह में बदलती हुई सुनाई देती हैं|

किसी वक़्त प्रतिदिन पांच किलोमीटर दौड़ने वाले रामलाल की लाठी की ठक-ठक सुबह-सुबह सुनाई दी तो  बदरी प्रसाद ने गेट खोल दिया दोनों के गेट आमने सामने होने पर भी बहुत दिनों बाद दोनों का मिलना हुआ|  मूढे पर बैठने के बाद धीरे- धीरे इधर उधर की बातों का सिलसिला चल निकला पर आज हमेशा की तरह गूँजने वाले उनके ठहाके गायब थे बदरी प्रसाद हर संभव कोशिश कर रहे थे कि रामलाल के बेटे का प्रसंग बातों के बीच न आये |

थोड़ी ही देर में सामने दिखाई दिया रामलाल की बहू बाहर गमलों में नित्य की भांति  पानी दे रही है|

रामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा “जब से बेटा गया है इन गमलों की नियमित देखभाल बहू खुद ही करती है मुझे नहीं करने देती” |

बदरी नाथ न चाहते हुए भी बोल पड़ा “देख रामलाल बहुत दिनों से मैं ये कहने की हिम्मत जुटा रहा था सो आज वक़्त आ ही गया ,बहू तुम्हारा इतना ख़याल करती है तुम्हारे सूखे गमलों तक को जिन्दगी दे रही है पर क्या तुमने कभी इस जीते जागते गमले के सूखेपन को  देखा ?? क्या सोचा तुम्हारे बाद इस गमले का क्या होगा”

सुनते ही आँखों के गीलेपन को छुपाते हुए रामलाल उठ खड़ा हुआ बोला “बदरी तेरे यहाँ वो अखबार आता है उसका मेट्रीमोनियल वाला पेज देना”

.

मौलिक एवं अप्रकाशित   

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 15, 2016 at 1:26pm

आद० गिरिराज जी,आपको लघु कथा पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई तहे दिल से आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 15, 2016 at 1:25pm

आद० नीता जी ,आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 15, 2016 at 1:24pm

आद० हर्ष महाजन जी ,आपको लघु कथा ने प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |

Comment by Ravi Prabhakar on August 14, 2016 at 8:28pm

शब्‍दों की मित्‍तव्‍यतता करते हुए यह लघुआकारीय लघुकथा एक वृहद साकारात्‍मक संदेश देने में पूरी तरह सफल रही है। कथ्‍यगत, शिल्‍पगत व प्रभावगत विशेषताओं को समोए हुए इस लघुकथा हेतु असीम शुभकामनाएं प्रेषित है। सादर

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 8:14pm
बहुत गहरी रचना.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2016 at 10:13pm

मार्मिक और आँखे खोलने वाली कथा कही है आपने  , आ. राजेश जी हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by Nita Kasar on August 10, 2016 at 9:10pm
सारगर्भित संदेश देती है कथा,रामलाल को बहू के भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिये ।रामलाल का त्वरित निर्णय प्रभावित करता है बधाई आपको आद०राजेशकुमारी जी ।
Comment by Harash Mahajan on August 10, 2016 at 2:47pm

आ० राजेश कुमारी जी बहुत ही सशक्त

"सुनते ही आँखों के गीलेपन को छुपाते हुए रामलाल उठ खड़ा हुआ बोला “बदरी तेरे यहाँ वो अखबार आता है उसका मेट्रीमोनियल वाला पेज देना”

और मार्मिक लघु कथा !

सादर !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:31pm
आद० सुशील सरना जी आपको लघु कथा ने प्रभावित किया मेरा लेखन सार्थक हुआ आपका दिल से बहुत बहुत आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:25pm
आद० नयना जी ,आपने बिलकुल सही कहा दरअसल इस लघुकथा के पीछे यही सन्देश है |आपने प्रस्तुति पर अपने विचार रखे इसका मान बढाया आपका दिल से आभार |

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