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नारी तू नारायणी (उलाला छंद)/सतविन्द्र कुमार

नारी भारत में कभी,पाती थी सम्मान को
उसको थे सब पूजते,रखते उसके मान को
कष्ट बहुत सहने पड़े,कालांतर में नार को
कमतर था समझा गया, दुर्गा के अवतार को।

फिर नारी ने भी सही,दी खुदको पहचान है
आदिकाल से ही रही,नारी की तो शान है
सूया-सीता रूप में,नारी पर अभिमान है
जीजा माँ ,दुर्गावती,भारत-भू की आन है।

मातृशक्ति है जो बनी,नारी जीव महान है
जिसके आँचल में पले, पाती सुख संतान है
हर सुख अपने छोड़ दे,ममता-गुण की खान है
हे देवी! हम मानते, नारायणी समान है।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 6:33am
प्रोत्साहन एवम् मार्गदर्शन के लिए कोटिशः आभार श्रद्धेय सौरभ पाण्डेय जी।मैं परिष्कार का प्रयास करूँगा।सादर नमन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2016 at 10:41pm

आदरणीय सतविन्द्र जी, उल्लाला छन्द पर बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने. आपने पदान्त की तुकान्तता का निर्वहन किया है.  कतिपय छन्दकार चरणबद्ध तुकान्तता का भी निर्वहन करते हैं. बहुत-बहुत बधाइयाँ. 

वैसे,  अवतार पुल्लिंग शब्द है. 

तथा,

सूया-सीता रूप में,नारी पर अभिमान है
जीजा माँ ,दुर्गावती,भारत-भू की आन है। ...

दूसरी पंक्ति बहुवचन की होगी. अतः तुकान्तता है और हैं हो कर भिन्न हो जा रही है. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 18, 2016 at 9:02pm
अनुमोदन कर प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक आभार संग नमन आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।सादर वन्दे।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 6:57pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, उल्लाला छंद की सुंदर प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

कृपया ध्यान दे...

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