For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश हर दिन ही मुक़द्दस ईद हो (ग़ज़ल 'राज ')

2122 2122 212
बह्र –रमल मुसद्दस महजूफ़

काश हर दिन ही मुक़द्दस ईद हो 
और उनकी इस बहाने दीद हो

दिल ही दिल में प्यार हम करते उन्हें 
हो न हो उनको भी ये उम्मीद हो

चाँद मेरा सामने आये जहाँ 
शर्म से छुपता हुआ खुर्शीद हो

एक पल भी रह न पाए बिन मेरे 
ख़्वाब में मेरी उन्हें ताकीद हो

चाँद तारे दे गवाही साथ में 
यूँ हमारे इश्क़ की तज्दीद हो

छाँव में अपने बुजुर्गों की मिलें 
अपने रिश्तों की यही तश्दीद हो

‘राज’अपना मुल्क ये रोशन रहे 
क्या दिवाली क्या हमारी ईद हो

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 9:40pm

प्रिय राहिला जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Rahila on July 4, 2016 at 9:18pm
"एक पल भी रह न पाए बिन मेरे
ख़्वाब में मेरी उन्हें ताकीद हो"वाह ...बहुत खूबसूरत शेर।पूरी ग़ज़ल बेहद शानदार हुयी आदरणीया दीदी!खूब, खूब बधाई ।सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 8:34pm

जयनीत कुमार  जी ,आपका  तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 8:34pm

बहुत -बहुत शुक्रिया महेंद्र कुमार जी ,आपका कहना सही है दें होना चाहिए |मूल प्रति में सुधार  कर लिया है आभार आपका .

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 4, 2016 at 7:55pm
आदरणीया राजेश जी, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई आपको। सादर!!
Comment by Mahendra Kumar on July 4, 2016 at 7:31pm
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है आदरणीया राजेश जी, दिली दाद क़ुबूल फरमायें!

//चाँद तारे दे गवाही साथ में// मेरे हिसाब से इस मिसरे में 'दे' की जगह 'दें' होगा, देख लीजिएगा। सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 5:23pm

आद० गिरिराज जी ,आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 5:22pm

आद० डॉ.  आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 5:21pm

आद० रवि भैय्या आपने सही कहा मगर हर दिन की ख्वाहिश क्यूँ हुई ये मतले के सानी  ने बता दिया होगा हाहाहा..

खैर ग़ज़ल पर आपकी दाद माने रखती है दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:39pm

आदरणीया राजेश जी , अच्छी सामायिक गज़ल कही  आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
15 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service