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मित्रों-सहयोगियो, तुम
रूको तो सही,
भागते हो किधर? कुछ
सुनो तो सही।

आसमां के तारों को,
तुम देखो तो सही।
चांद नजर आएगा,
तुम पहचानो तो सही।

चांद ही मेरी मंजिल है,
कदम बढाओ तो सही।
मंजिल मिल जाएगी हमें,
हिम्मत जुटाओ तो सही।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 10:15pm

बहुत बढ़िया | हार्दिक बधाई स्वीकारें | 

Comment by Shyam Narain Verma on May 20, 2016 at 12:37pm

बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 20, 2016 at 10:39am
आदरणीय समर कबीर साहब बधाई के लिए शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on May 19, 2016 at 6:40pm
जनाब सुरेश कुमार कल्याण साहिब आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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