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तपिश को कौन समझेगा
जलते शहर की
कुर्सी से जो मतलब ठहरा
विरोध प्रदर्शन धरने हडताल
दिहाडी को निगल गए
नहीं थमेंगे
गरीब को रोटी नहीं मिलेगी।
पहरेदार
सब कठपुतलियां हैं
सफेदपोशों की।
मजबूर
घोडे को लगाम जो लगी है
गरीब ने कहा
चलो गरीबों चलो कंगालो
मरने वालों को लाखों मिलते हैं
मरने चलें
दो-चार दिन का सूतक सही
दिहाडी-रोटी नहीं तो लाखों सही
पीछे वालों की जिंदगी
आराम से गुजरेगी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 7, 2016 at 9:02am
आदरणीय सतविंदर जी हार्दिक धन्यवाद
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2016 at 10:47pm
सुंदर गंभीर रचनाआ आदरणीय सुरेश कुमार जी।हार्दिक बधाई।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 6, 2016 at 12:54pm

एक ही कमेन्ट से 4 पन्ने क्यों भर दिए भाई सुरेश कुमार कल्याण जी ?

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:26am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:26am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:26am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:25am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:25am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:25am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:24am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें

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