For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-"नूर-ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

१२२/१२२/१२२/१२ 
.
कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,
वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.
.

चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,
सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.
.

मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.  
.

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.
.

हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,
मगर आसमां ही झुका देर से.
.

अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,
वो ख़त तो जला पर जला देर से.
.

कई खेत प्यासे तड़पते रहे,
मिला बादलों को पता देर से.
.

भँवर, कश्तियाँ लीलता ही गया,
मगर वाँ भी पहुँचा.. ख़ुदा देर से. 
.

तू इंसान बेशक़ है आलातरीन,
तू पहचाना लेकिन गया देर से.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 905

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 11:33pm

आदरणीय नीलेश जी, आपकी यह ग़ज़ल पहले से ही परचम के साथ है. मैं तो भावमुग्ध हूँ. 

लेकिन ! 

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया, 
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से. .. इस शेर में, भाईजी, तार्किकता का लोचा लग रहा है हमें. गोदने काम तो होता है हार्डवेयर पर. जबकि धड़कन है सॉफ़्टवेयर ! सो उला तो कुछ यों होना श्रेयस्कर होता - तेरा नाम दिल पे ही गुदवा लिया
कुछ गड़बड़ लगे तो बताइयेगा. 

बाकी के लिए ज़िन्दाबाद ! 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2016 at 9:10pm

शुक्रिया 

Comment by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 8:38pm
वाह आ. नीलेश जी! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बन पड़ी है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2016 at 9:34am

शुक्रिया आ. रवि सर....
आख़िरी शेर किसी और के लिए कहा गया है ...मक्ता अभी बाक़ी है--
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2016 at 9:33am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2016 at 9:33am

शुक्रिया आ. नादिर खान साहब 

Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 11:58am

आदरणीय नीलेश जी बहुत सुन्‍दर गजल से नवाजा है मंच को आपने शेर दर शेर दाद और मुबारक बाद कुबूल करें । आखिरी शेेर में तखल्‍लुस का इस्‍तेमाल करते तो और अच्‍छा लगता । सादर । 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:39pm

शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीय नीलेश जी, दाद कुबूल करें।

Comment by नादिर ख़ान on April 27, 2016 at 12:42pm

मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,

मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,

ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,

वो ख़त तो जला पर जला देर से.

आदरणीय नीलेश जी बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं, बहुत मुबारकबाद आपको 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 27, 2016 at 6:02am

शुक्रिया आ. दिनेश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service