For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गड़ाधन (लघुकथा )राहिला

"गुरूदेव महाराज!बड़े ही सही समय पर आगमन हुआ आपका।अब आप ही समझाओ इनको।"कहते-कहते रमा की आँखों से आँसू छलक पड़े।
"चिंता मत करो बेटी! मुझे जैसे ही रामदयाल के बीमार होने की सूचना मिली,मैं तुरंत ही आ गया।"
परिवार के धर्म गुरू ने रमा को तसल्ली दी।रमा उन्हें पति के कमरे में ले गई ।जहां बीमारी से कमजोर रामदयाल अचानक गुरूदेव को देखकर भावुक हो गया। रूंधे हुये गले से अभिनंदन कर,बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठा ।
"ये क्या हाल बना रखा है रामू?"
"अब आप से क्या छुपा महाराज!बड़े भाईयों ने गद्दारी की,गांव की पूरी जायदाद में से ना पक्का मकान दिया,ना जमीन।लेकिन जब एक कच्ची अटारी दी तो मेैंने तसल्ली कर ली,क्योंकि अम्मां मरते वक्त बता कर गईं कि उसमें धन गड़ा है।लेकिन इस बात की ना जाने कैसे, उस नामुराद भतीजे को भनक लग गई और उसने रातोंरात पूरी अटारी खोद मारी।अब मेरे हाथ क्या आया?कहां तक सब्र करू।"
"रामदयाल!ये तो मैंने भी कहा था तेरे भाग्य में गड़ाधन है।और एक बात गौर से सुन,भाग्य कोई नहीं छीन सकता।मेरी गणना अनुसार तुझे धन की प्राप्ति लगभग तीन महीने पहले ही हो चुकी।जरा सोच कर बता।"गुरूदेव की बात सुनकर वो सकते में आ गया।और सोचने लगा।
"तीन महीने पहले तो प्रभु!अपनी नई जमीन पर एक नया व्यवसाय शुरू किया है जो बड़े मुनाफे का साबित हुआ।"
"किस चीज का? "
"बोरिंग द्वारा जल प्रदाय का।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 972

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on May 9, 2016 at 11:25pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय परवेज साहब! आपने अपना कीमती वक्त मेरी रचना को नजर किया ।बहुत आभार ।सादर
Comment by Parvez khan on April 25, 2016 at 7:26am
सही कहा रब किस रूप मे भाग्य बदल दे ये वही जानता है बक्त ऐर भाग्य कब बदल जाये कोई नही जानता।
Comment by Rahila on April 5, 2016 at 8:27am
आदरणीय उस्मानी जी! आपने रचना के मर्म को बखूबी समझा।मैं बहुत शुक्र गुजार हूं आपने रचना को अपना बहुमूल्य समय दिया।सादर
Comment by Rahila on April 5, 2016 at 8:24am
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी! आपके प्रशंसा भरी टिप्पणी ने तो मेरा उत्साह दो गुना कर दिया।बहुत आभार ।सादर नमन
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 4, 2016 at 11:42pm
ऊपरवाला किस रूप में कब कहाँ क्या दे दे, कई बार हम स्वयं न समझ परख कर दुखी बने रहते हैं। जो सुख तीन महीनों से मिल रहा था गड़े धन के रूप में उसे महसूस किए बिना मृग मरीचिका की तरफ भागते पात्र का सुंदर चित्रण करती हुई रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 10:06pm

वाह  वाह हर बार एक नया विषय चुन के लाती है आप राहिला जी आज कल रिश्ते स्वार्थ की भेंट चढ़ गए हैं बेहतर नमूना पेश किया है लघु कथा द्वारा और खेती में जल प्रदाय से अच्छी इनकम हो  जाती है यही जल ही तो गडा धन है जो जमींन ही तो देती है गुरुदेव ने सच कहा था |बहुत सुन्दर लघु कथा हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Rahila on April 4, 2016 at 8:52pm
आज तक इन जमीन जायदाद ने किसी को आत्म संतुष्टि नहीं दी। लोग इस बात पर कुतर्क कर सकते है । लेकिन कितने ही झगड़े देखने सुनने में आते है और लोग रिश्ते तो भुला ही देते है साथ, भाग्य का लेखा जोखा भी झुठला देते है । आपने रचना का मर्म समझा बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता दी! सादर नमन ।
Comment by Nita Kasar on April 4, 2016 at 12:59pm
दौलत के लालच में बचपन के ख़ून के रिश्ते दम तोड़ने लगते है पर जितना मिलना है मिलता ही है ।ज़रूरत होती है धैर्य है सार्थक कथा के लिये बधाई आपको गढ़ना को गणना कर लें आद० राहिला जी ।
Comment by Rahila on April 3, 2016 at 6:42pm
आद.विजय सर जी! आपने तो बहुत थोड़े से शब्दों बहुत ज्यादा तारीफ़ कर दी! इस हौसला अफज़ाई के लिये बहुत आभार ।सादर नमन
Comment by vijay nikore on April 3, 2016 at 3:41pm

आपकी कलम से ऐसी ही अच्छी लघु कथा आती है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service