For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हालात उतने भी ख़राब नहीं ( लघुकथा)

हालात उतने भी खराब नहीं

घड़ी पर नज़र डाल शांता बुदबुदाई, “छः बज गए, श्वेता ने फोन नहीं किया अभी तक! कितनी बार कहा है कि ऑफिस में मनाही है तो क्या हुआ, बाहर निकलने पर तो तुरंत फोन कर दिया करे. पता है पापा भी घर पर नहीं हैं और मैं अकेली हूँ, पर ये आज कल के बच्चे माता-पिता की चिंता समझे तब ना!”
‘ओह! अब तो साड़े छः हो गए, मैं ही कर लूँ,’ सोच शांता ने फोन मिलाया
टिक-टिक-टिक ट्रिंग!
फोन कट गया. दुबारा मिलाने पर दो बार ट्रिंग-ट्रिंग हुई और फोन कट गया. फिर चार बार, आठ बार...
घड़ी की बढती हुई सुइयों के साथ-साथ बढती घबराहट के साथ, बीसियों बार नंबर मिला डाला, पर फोन पर दूसरी ओर से वही संदेश बजता रहा स्विच ऑफ का.
थोड़ी ही देर हुई थी, कि फोन की घंटी बज उठी. शांता ने दौड़ कर फोन उठाया, “हैलो! हाँ बेटा, मैं... माँ... हाँ-हाँ, बोल ना? सुन रही हूँ, श्वेता, बोल बेटा...”
मगर उधर से फोन कट चुका था.
शांता की घबराहट का ओर छोर ना था. सिर घूमने लगा, आखों के आगे अँधेरा छाने लगा. अखबार की सुर्खियाँ, समाचारों की हेडलाइन सब जैसे चारो ओर गोल गोल घूमने लगीं. सिर से पैर तक पसीने में डूबी शांता, कमरे से बरामदे तक, फिर बरामदे से गेट तक, और गेट से कब सड़क तक आ खड़ी हुई, खुद भी याद ना था. याद थी, तो पिछले दिनों की खबरें और अपनी बेटी श्वेता.
चकरा कर गिरने ही वाली थी, कि पीछे से आकर किसी ने थाम लिया...
“अरे माँ! आप यहाँ क्यों खड़ी हो?”
“तू ठीक तो है बेटा?” शांता ने पूछा.
“हां, माँ, मैं ठीक हूँ... मेरे फोन की तो बैटरी चली गई थी. दोस्त के फोन से आपको मिलाया भी, मगर चलती बस मे सिंग्नल नही मिल पा रहा था...”
बेटी के साथ एक अजनबी चेहरा भी था. शांता ने प्रश्नवाचक नज़रों से उसे देखा.
“इतनी देर हो गई थी,कि इनको अकेले भेजना ठीक ना लगा. मैं बस-स्टैंड से अपनी बाइक लेकर घर छोड़ने चला आया. बिटिया को अक्सर आते जाते देखा है मैंने अपनी बस में.”
शांता कृतज्ञ भाव से उस बुज़ुर्ग बस-कंडक्टर को देखती रह गई. चेहरे पर अब भी घबराहट के भाव बाकी थे.
“ओहो, माँ! इतनी परेशान मत हो, सब ठीक है! हालत उतने भी खराब नहीं हैं...” श्वेता ने मुस्कुरा कर माँ की ओर देखा और बाँह पकड़ कर घर के भीतर ले गई.

मौलिक एवं अप्रकाशित
सीमा सिंह

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Archana Tripathi on April 7, 2016 at 10:57am
माँ की चिंता दर्शाती बढ़िया कथा
Comment by Archana Tripathi on April 7, 2016 at 10:56am
माँ की चिता दर्शाती बढ़िया कथा
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 6:21am
बहुत ही सुंदर चित्रण आ.सीमा जी
Comment by Pawan Jain on March 16, 2016 at 11:43am

बढ़िया कथा ,माँ की स्वभाविक चिंता ,बच्चों की बेफिक्री का बढि़या चित्रण ।बधाई सीमा जी ।
बुजुर्ग बस कंडक्टर का साथ अनावश्यक एवं अतिशयोक्ति ।सादर ।

Comment by Seema Singh on March 15, 2016 at 6:36pm
आभार आ० सुशील जी आपने कथा पर समय दिया ।यूँ तो गुरुजन कहते है कि कथा पर सफाई देने की आवश्यकता नही होनी चाहिए किंतु आपकी टिप्पणी घटनाक्रम को लेकर है तो मैं मात्र इतना कहना चाहती हूँ कि निर्भया भी मेच्योर थी और स्वयं घर जाने में सक्षम भी।
Comment by Ram Sharma on March 15, 2016 at 12:07pm

बेहतरीन प्रस्तुति, आद० सुशील शर्मा जी से मैं भी सहमत हूँ

Comment by Samar kabeer on March 14, 2016 at 6:19pm
मोहतरमा सीमा सिंह जी आदाब,इस सुंदर लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 14, 2016 at 2:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बहुत सुंदर लघुकथा!

Comment by Sushil Sarna on March 14, 2016 at 1:28pm

आदरणीया सीमा जी माँ की चिंता को आपने बड़े स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया है। हार्दिक बधाई।  आ.सीमा जी क्षमा सहित बच्ची आफिस में काम करती है तो मेच्योर है और इतनी सक्षम है कि वो स्वयं बिना किसी की मदद के घर आ सकती है दूसरा शाम का समय अगर कोई बच्ची हो तो सही लगता है लेकिन कोई बुजुर्ग किसी यंग को घर छोड़ने आये तो बड़ा अजीब सा लगता है।  मेरे विचार से पांच लाईन हालात उतने भी बुरे नहीं लेकिन हालात कब बुरे हो जाएँ ये नहीं खा जा सकता अतः सावधानी और सजगता की सदैव बरतनी चाहिए। जरा सी लापरवाही अनर्थ कर सकती है। खैर ये मेरा विचार है कृपया इसे अन्यथा न लेवें। यदि बुरा लगे तो क्षमा करें आदरणीया। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:42am

आ० सीमा जी , माँ तो आखिर माँ होती है हालत अच्छे हों या बुरे उसकी चिंता तो बच्चो के प्रति निरंतर होती ही है . आज जैसा दौर चल रहा हो माँ का अत्यधिक चिंतित होना लाजमी है पर इससे मुक्ति भी वही दिल सकती है l

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service